('सवालों की किताब' पढ़ने के बाद नेरूदा से चन्द सवाल)
लोहे की साँस कहाँ है?
क्या लुहार की भाथी में?
और उसकी ताक़त?
क्या भट्ठी की आग में?
जीवन में कितनी हो कविता
कि कविता में धड़कता-थरथराता
रहे जीवन?
विद्वानों के हृदय
क्या अबाबील के अण्डे जैसे होते हैं?
क्या आसमान में उड़ती पतंगें
छतों पर वापस आना चाहती हैं
या परिन्दों के साथ उड़ते हुए
दूर देश चली जाना चाहती हैं?
क्या सच्ची कविताएँ और निश्छल हँसी
चीलें उठा ले जाती हैं इनदिनों?
क्या लकड़बग्घों को
शेयर बाज़ारों की जानकारी होती है?
या वे कला-वीथिकाओं में पाये जाते हैं
इनदिनों?
क्या सपनों की चोरी दिन-दहाड़े हो सकती है
या उन्हें गिरवी रखकर जीवन बीमा की
पालिसी ख़रीदी जा सकती है?
क्या उदासी की कविताओं के बिना भी
उम्मीदों की कविताएँ हो सकती हैं?
क्या मरुथलों के सपनों में
हरा रंग होता है?
नदियाँ सागर से मिलने के लिए
बेचैन अधिक रहती हैं
या अपने उद्गम ग्लेशियर की याद में
उदास अधिक रहती हैं?
क्या कोई आत्मीय दुख अनावृत्त होकर
अपनी रहस्यमय आभा खो देता है
और कविता के प्रदेश से
बहिर्गमन कर जाता है?
ध्रुव प्रदेशों के सफ़ेद भालू क्या कभी
देख सकेंगे रंग-बिरंगी तितलियों की दुनिया?
सहजता का स्वाद क्या कभी
चख सकेगी विकट विद्वत्ता?
अपनी सींगों की जटिलता के बारे में क्या
कभी सोचता है बारहसिंगा?
क्या बुद्ध कभी भी क्रुद्ध नहीं हुए होंगे?
क्या बिल्लियाँ मनुष्यों के सपने
देख सकती हैं?
क्या दरवाज़े भी इन्तज़ार करते हुए
थक जाते होंगे?
कला वीथिका की भीड़ से बेपरवाह
बैंगनी रंग का घाघरा पहने
हेनरी मतीस की स्त्री
कौन सी किताब पढ़ रही है?
इस मायूसी भरी रात में
बीथोवेन की सिम्फ़नी 'एरोइका'
कहाँ बज रही है?
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