Sunday, March 30, 2025

एक सपने का क़सीदा जिसमें शहतूत का कटा हुआ पेड़ पड़ा था रक्तरंजित

 

शहतूत के कटे हुए तने से बहता हुआ रक्त

मेरे हृदय में प्रवाहित हो रहा था। 

उसके फलों के कत्थई गुच्छों पर 

मँडराती मधुमक्खियाँ

मद्धम गुनगुन स्वर में विलाप कर रहीं थीं। 

हवा की सांत्वना की शान्तिवादी कोशिशें

विफल हो चुकी थीं। 

सोशल डेमोक्रेटिक  बकरियों को उम्मीद थी कि

फिर भी कुछ हरी पत्तियाँ बची रह जायेंगी

चबाने के लिए

अगर कुछ प्रार्थना पत्र लिखे जायें

मिमियाहट की विनम्र भाषा में। 

कविगण ख़ुशहाली के नये उद्यानों की ओर

प्रस्थान कर चुके थे सुन्दर कविताओं के साथ

फौजी बूटों तले कुचले गये फूलों से भरी

सड़कों पर सफ़र करते हुए। 

जलकुम्भी के विस्तार ने सोख लिया था

पानी के ऑक्सीजन का बड़ा हिस्सा। 

तालाब में जहाँ कमल खिले थे

वहाँ कुछ लाशें तैर रही थीं। 

सौन्दर्यशास्त्र की सुनहरी जिल्द वाली

किताबों पर बैठे थे चितकबरे बिसखोपरे। 

नींद के दरवाज़ों  पर कोई लगातार

दस्तक दे रहा था

इस सपने के क़ैदख़ाने से

बाहर आने के लिए आवाज़ लगाते हुए। 

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(30 Mar 2025)


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