Saturday, March 01, 2025

पहाड़ों में सर्दियों के मौसम का क़सीदा

 

रोशनी की पीली चमकती कुल्हाड़ी से

इस पारदर्शी बर्फ़ की सिल्ली को काटो

वीराने के मुसाफ़िर! 

बहने दो मेरे नीले पड़ते

सिकुड़ते हृदय से रक्त अविरल। 

वनस्पतियों की प्यासी जड़ों को

पीने दो उसे। 

मेरे कराहते फेफड़ों को

बाँज के घने हरे पत्तों से

छनकर आती हवा को सोखने दो। 

बस मुझे सोने मत देना इस बीच

जगाये रखना 

सड़कों से बटोरकर लायी गयी

दुख भरी आवाज़ों के शोर से

और शिशुवत चमकते धूप के सपने

और साँवले गर्दो-गुबार की 

लौकिक जीवंतता से। 

सुदूर उत्तर से आये प्रवासी पक्षियों ने

ढूँढ़ लिये हैं अपने मौसमी ठिकाने

और ऊँचे पहाड़ों की ढलानों से उतरकर

बकरियाँ तराई के साल वनों में

मटरगश्ती कर रही हैं। 

अप्राकृतिक झीलों में तैर रही हैं चिन्तनरत

 चार-पाँच शान्तिप्रिय बौद्धिक बत्तखें

और चंद कर्तव्यनिष्ठ आज्ञाकारी घोड़े 

पर्यटकों को पीठ पर लादे

सुनसान पहाड़ी सड़कों पर चले जा रहे हैं। 

मुझे बेचैनी भरा संगीत आत्मा के कोटरों में

भर देने वाले बनजारों के कारवाँ का

इन्तज़ार है। 

उनके साथ मुझे उन ग्लेशियरों तक जाना है

जिन्होंने सदानीरा नदियों के लिए

पानी सँजो रखा है। 

रंगहीन पारदर्शी बर्फ़ की सिल्ली पर

नहीं सोना है मुझे। 

सफ़ेद कुदरती बर्फ़ के विस्तार में

चलते हुए निष्प्राण होकर गिर पड़ना 

मेरा चिरसंचित सपना है। 

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(1 Mar 2025)

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