Thursday, February 27, 2025

पहाड़ों की शाम की बहुरंगी उदासी का क़सीदा

 

सुरमई रंग की एक चादर 

मन्द-मंथर गति से लहराती हुई

हरी कच्ची बालियों वाले गेहूँ के 

सीढ़ीदार खेतों पर उतर रही है। 

रोशनी पीली पड़ती हुई

ऊपर चोटियों की ओर

खिसकती जा रही है। 

सामने आग का लाल गोला

नीचे की ओर तेज़ी से

लुढ़कता जा रहा है। 

चारे का गट्ठर लिये एक बूढ़ी स्त्री

चढ़ रही है ऊपर बस्ती की ओर। 

एक पुरानी उम्मीद की मद्धम पड़ती पुकार। 

निरुद्देश्य सड़क पर चहलकदमी

कर रहा है  काला भोटिया कुत्ता। 

एक उत्तर-आधुनिकतावादी विचार। 

अखरोट के सख़्तजान दरख़्त से 

बदन रगड़ रही है एक बूढ़ी गाय। 

प्राच्य निरंकुशता का सीपिया रंग

चमकता हुआ सबाल्टर्न कोलाहल में। 

आसमान के अदृश्य आँसुओं से

भीग रहा है

एकाकी शापित देवदारु तले बैठी लड़की का

नीला स्कार्फ

और वह बेख़बर माल्टा चूस रही है

जैसे पिछली सदी का कोई सपना। 

प्यार पर एक अराजनीतिक कविता। 

सहसा बुरांश के झुरमुट से 

उड़ता है एक मुनाल

और इम्प्रेशनिस्ट पेंटिंग के फ्रेम से

बाहर निकल जाता है। 

क्लोद मोने झुँझलाते हुए ब्रश और पैलेट

ढलान पर फैली झाड़ियों में फेंक देते हैं। 

रंग बिखर जाता है इधर-उधर

पत्तों और घास पर। 

जल्दी ही चाँदनी का अवाँगार्द हिरन

इन्हें चर जायेगा

और धूसर विचारों में सराबोर

स्वप्नहीनता के शिकार 

रात के सभी स्वच्छंदतावादी पखेरू 

इस दुखद घटना के बारे में चुप रहेंगे। 

एक अनुर्वर  शाम 

निर्दोष भोली आत्माओं के  शिकार के लिए

घात लगा रही है। 

रात में डोलेंगी बेरहम बुराइयों की

रहस्यमय परछाइयाँ

और  पंचायत घर की कोठरी में बैठे सयानों को

सबकुछ पता होगा

कि कल कब-कब कहाँ-कहाँ

कितनी हत्याएँ होंगी! 

अच्छी ख़बरों की उम्मीद इनदिनों भला

कहाँ किसी को होती है? 

हर स्टिललाइफ़ पेंटिंग में

अदृश्य होती है जीवन की गति। 

विचारों के पहरे में

जो कविताएँ जागती रहती हैं सारी रात

वही कई-कई रातों और दिनों के

गुज़रने के बाद

किसी एक सुबह

जीवन का एक नया जादुई आख्यान

लेकर आती हैं। 

**

(27 Feb 2025)

No comments:

Post a Comment