देखो, मैंने सारे प्यार खो दिए
जैसे बचपन में सिक्के खो देती थी रास्ते में।
और अब मैं नहीं पहुँच सकती तुम तक।
बीते दिनों के रास्ते मुझे याद नहीं
और दूर से आती प्रेमविह्वल पुकारें
डूब रहीं हैं
जलती हुई बस्तियों से उठते शोर में।
यह चीज़ों को खोने और पाने की
एक नयी कथा है
और मैं उम्र का एक बड़ा हिस्सा
ख़र्च कर चुकी हूँ।
वक़्त के गिद्ध ने चेहरे पर पंजों के निशान
छाप दिये हैं लेकिन हाँ, हृदय तक वह
नहीं पहुँच सका है अबतक।
मैंने अपने सपने छुपा कर रख दिये हैं
फ़लाकत-ज़दा लोगों की बस्ती में
और अब प्यार के मायने बदल चुके हैं
मेरे लिए।
और वैसे भी मैं बेहद साफ़-सुथरी जगहों
और दिलों में
व्यवस्थित नहीं हो सकती।
मेरा हृदय ख़ून में लथपथ है और
ख़ून सनी मिट्टी और लम्बे सफ़र की थकान से
लिथड़ी हुई हैं मेरी जर्जर जूतियाँ जिन्हें पहने हुए
मैं किसी सुसंस्कृत-सम्भ्रान्त नागरिक के घर
भला कैसे जा सकती हूँ!
वापस बुला लो तुम अपनी पुकार।
प्रतीक्षा के पतंग की डोर लपेट लो।
मैं जीवन की तलाश में किसी नये
नक्षत्र मण्डल की यात्रा पर
जा रही हूँ।
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(14 Dec 2024)
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