Saturday, November 23, 2024

कविता की एक रात

 

कविता की एक रात

सुदूर उत्तर-पूर्व से बहती हुई

रक्त-रेखा चुपचाप एक नदी बनती 

आगे बढ़ रही थी। 

मानचित्र के शीर्ष पर केसर के खेतों में

राइफलें खड़ी थीं। 

मध्य क्षेत्र में जंगल कटे पड़े थे

और लाशें गिर रही थीं

कटे पेड़ों की तरह। 

हवा में जो प्रदूषण था उसमें

ज़हरीली गैसों से अधिक दमघोटू

आतंक की गंध थी। 

उन्मादी शोर का ध्वनि प्रदूषण चरम पर था। 

समंदर की छाती पर टिमटिमाती बत्तियांँ

अनुपस्थित थीं उस रात

और सिर्फ़ कुछ आवाज़ें थीं रहस्यमय

अँधेरे में। 

चाँद गहरी नींद सो रहा था

और तारे शोकाकुल थे। 

बस कुछ कवि जग रहे थे

रात्रि के इस बेचैन प्रहर में

उद्विग्नचित्त, 

दुनिया की सबसे ख़ूबसूरत, 

सर्वप्रिय कविता लिखने की कोशिशों में

डूबे हुए। 

दरबार से बुलावा आया था। 

अगले दिन ही रवानगी थी। 

**

(23 Nov 2024)


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