'मैं इतनी तरह के अपमान सहता रहा, जिनकी गिनती करना कठिन है : सिर्फ़ इसलिए कि मेरी कविता सस्ती होकर एक रिरियाहट बनने से बची रहे।'
~ पाब्लो नेरुदा
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हिन्दी कविता के परिदृश्य के सन्दर्भ में,
'यश की कामना और अमरत्व के लिए
मैंने इतनी तिकड़में कीं, इतनी जुगत भिड़ाई,
इतनी तरह के अपमान सहे
जिनकी गिनती करना कठिन है।
मिली तो प्रसिद्धि, पुरस्कार भी मिले
लेकिन मेरी कविता
बस रिरियाहट बनकर रह गयी।'
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