Sunday, November 17, 2024

हत्यारों और सौदागरों का लोकतंत्र और कला-साहित्य के मेले


 हत्यारों और सौदागरों का लोकतंत्र और कला-साहित्य के मेले

फिर सत्तासीन हत्यारों और सौदागरों ने

बार-बार एक-दूसरे को हृदय से धन्यवाद कहा। 

इसके बाद हत्यारों ने सौदागरों से कहा,

"अब कला-साहित्य-संस्कृति का एक रंगारंग मेला लगाओ

और एक भव्य मंच सजाओ

और वहाँ अपने लोगों के साथ कुछ

जनवादियों और प्रगतिशीलों को भी बुलाओ।" 

फिर ऐसा ही हुआ और कुछ जनवादी और प्रगतिशील भी

पहुँचे उस साहित्यिक महाकुम्भ में। 

उन्होंने वीरतापूर्वक निहायत नफ़ीस और कलात्मक भाषा में

सत्ता की आलोचना भी की और कुछ सुझाव भी दिये। 

फिर लौटकर उन जनवादियों और प्रगतिशीलों ने

छाती ठोंककर कहा कि हम तो उनके मंच पर जाकर भी

अपनी बात कह आते हैं। 

उधर हत्यारों ने असहमत लोगों से कहा,

"अब तो मान लो कम्बख्तो

कि हम कितने लोकतांत्रिक हैं

और अपनी आलोचनाओं के प्रति कितने सहिष्णु

और कितने उदार! 

अरे हम तो हत्या करने के पहले भी

बहुसंख्या की सहमति लेते हैं

और लोकतंत्र और संविधान का पूरा सम्मान करते हैं। 

लोगों की सहमति लेकर ही हम शासन करते हैं।" 

फिर हर्षोन्मत्त उन्मादी भीड़ ने जैकारे लगाये

और शासन करने वालों से पूछा कि असहमत लोगों का क्या करना है? 

इसपर ठठाकर हँसे हत्यारे

और शरारत से आँखें नचाते हुए बोले, 

"क्या यह भी बताना पड़ेगा!"

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(17 Nov 2024)

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