यातनागृह में जन्मी कविता
कोई पासपोर्ट, नागरिकता या पहचान का
कोई प्रमाण पत्र नहीं मेरे पास।
परिचय बस इतना है कि
कविता की दुनिया में संदिग्ध आप्रवासी हूँ,
ज़िन्दगी और सपनों की एक खोजी रिपोर्टर,
आत्माओं की एक गुप्तचर,
अंधकार और आतंक की घनघोर बारिश की
पूर्व चेतावनी देती सायरन की
तीखी, भेदती आवाज़।
मैं भुलाये जा चुके पहाड़ी गाँवों तक
दूर देस से आयी चिट्ठियाँ
पहुँचाने वाली डाकिया हूँ,
पतझड़ में गिरने वाले पीले पत्तों की ओर से
फूटते कोंपलों को भेजा गया
शुभकामना-संदेश हूँ,
घाटी के वनप्रांतर में अपने खोये हुए
बच्चों को ढूँढ़ती एक घायल
मादा गुलदार हूँ,
निस्तब्ध रात्रि में नदी के उस पार से आती
चकवी की प्रेमातुर पुकार हूँ।
मैं यातनागृह में जन्मी
रक्त सनी कविता हूँ
अँधेरे में जी रहे लोगों के दिलों में
ठिकाना ढूँढ़ती हुई।
जगमग भव्य सभागारों
और अतिसुसंस्कृत सुसज्जित बैठकख़ानों में
जाना ही नहीं मुझे।
मुझे इनके नीचे बने उन तहख़ानों को
तबाह करना है जहाँ
अतिशय कला, अराजनीतिक मानवतावाद
और फ़ासिस्ट विचारों की नयी-नयी
फसलें उगायी जाती हैं।
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(5 Oct 2024)
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