कमज़ोर कविताओं में निवास करती
कुछ मानवीय कमज़ोरियों,
कुछ मानवीय ग़लतियों और पश्चातापों,
कुछ काव्यात्मक बचकानेपन और
सहज निर्दोष आँसुओं की निरंतर उपस्थिति में
जो लड़ते रहे सच्चाई और न्याय के लिए
जीवनपर्यन्त,
तमाम उलाहनों, उपहासों, शिक़ायतों
और तोहमतों के बावजूद,
बहुतेरी विफलताओं और
पराजयों के बावजूद,
उनके पास सिर्फ़ अपनी अपेक्षाओं की
कसौटी थी और नहीं थी
किसी और से कोई अपेक्षा।
कमज़ोर कविताओं और मानवीय कमज़ोरियों
से भरे
पारदर्शी हृदय सहज ही वेध्य बने रहे
और उन्हें कुछ बेहद मामूली लोगों
और चन्द एक ग़ैरमामूली लोगों के
प्यार और विश्वास के सिवा कुछ भी नहीं मिला।
और एक बात और कोई अगर बताई
जा सकती है उनके बारे में तो वह यह कि
दर्शन और राजनीतिक अर्थशास्त्र की
मामूली या औसत जानकारी के बावजूद
ऐतिहासिक उलटाव और ठहराव के
लम्बे अंधकार युग में भी
मनुष्यता के भविष्य के बारे में
वे आशावादी बने रहे।
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(10 Sept 2024)
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