Wednesday, July 10, 2024

गुमशुदगी

गुमशुदगी

पुलिस का वह नाज़ुक सा दुबला-पतला 

सबइंस्पेक्टर छात्र जीवन में

कविताएँ लिखता था

और अब पहाड़ के दूर-दराज़ के इस थाने में

जहाँ शायद ही कभी कोई 

शिक़ायत दर्ज कराने आता था, 

दिन भर कुर्सी पर बैठा ऊँघता रहता था

टेबल पर टाँग पसारे हुए। 

आज उसके सामने बैठा था

खिचड़ी दाढ़ी और मैली-कुचैली टोपी वाला

 एक बूढ़ा जो ज़िद ठाने हुआ था 

कि गुमशुदा लोगों के रजिस्टर में 

उसका नाम लिख लिया जाये

और थाने की दीवार पर उसकी तस्वीर

चस्पाँ कर दी जाये। 

न उसे अपना नाम याद था, न ही उसके पास

कोई पहचान पत्र या आधार कार्ड था। 

कुछ घण्टे चुप रहने के बाद

सबइंस्पेक्टर बोला थकी हुई आवाज़ में, 

"चचा, गुमशुदा लोगों में मैं भी तो शामिल हूँ। 

लोग मुझे जानते हैं मेरी वर्दी पर टँके नाम से

और मेरे पहचान पत्र से

लेकिन मैं ख़ुद को नहीं पहचान पाता, 

न ही कुछ याद कर पाता हूँ

और जब भी निकलता हूँ दौरे पर

तो बस ख़ुद को ही ढूँढ़ता रहता हूँ

भीड़ के एक-एक चेहरे को

ग़ौर से देखते हुए। 

**

(10 Jul 2024)

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