Wednesday, June 26, 2024

कविताओं का मामला

 कविताओं का मामला

मुमकिन है कि यह बहुत आसान मामला हो

जिसे हमने  मुश्किल बना दिया हो

अपने कारणों से। 

या फिर शायद हमें 

यह इसलिए मुश्किल लगा हो

कि हमने दिल लगाकर  इसे समझने की

कभी कोशिश ही न की हो। 

उमर के लम्बे बरस ज़िन्दगी के

काले कोस तय करने में ख़र्च करने के बाद

यह अक़ल आयी

कि कविताओं के साथ सवाल 

समझ का उतना नहीं था जितना कि

इस बात का था कि हमारे सरोकार

कितने गहरे थे, 

हम इन्तज़ार कितना कर सकते थे, 

कितने गहरे दुखों को

हम बिना किसी को कुछ बताये

कितनी देर तक साथ लिये चल सकते थे

और जगने के बाद अपने अच्छे-बुरे सपनों को

कितनी देर तक याद रख सकते थे। 

तो बरख़ुर्दार, यूँ कह सकते हैं कि

कविताओं का मामला हर सूरत में

एक संजीदा मामला होता है। 

इसकी तहों में दुखों और सपनों को रखकर

आप कितना लम्बा रास्ता तय कर सकते हैं

यह इस बात से तय होता है कि 

सभी लोगों के लिए

प्यार और इंसाफ़ को आप 

रोटी जैसी बुनियादी ज़रूरत

मानते हैं या नहीं। 

और अहम बात यह है कि एक लफ़्ज़ होता है

'अवाम', जिसे आप जानते तो ज़रूर होंगे

और बरतते भी होंगे 

मगर यह भी तो कभी जानने की कोशिश कीजिए

कि क्या कभी दिल से आप ख़ुद को 

उस अवाम का हिस्सा महसूस करते हैं? 

**

(26 Jun 2024)

No comments:

Post a Comment