शरीफ़ नागरिक के दुख
ओहोहोहो, कितने दुखी हो तुम मेरे भाई!
इतना अन्याय हुआ तुम्हारे साथ
और कोई भी खड़ा नहीं हुआ तुम्हारे साथ
किसी ने तुम्हारे कंधे पर नहीं रखा
प्यार और हमदर्दी भरा हाथ।
बुरा हुआ, बहुत बुरा हुआ मेरे भाई
तुम्हारे जैसे भलेमानस के साथ।
लेकिन मेरे शरीफ़ नागरिक बंधु,
याद करो, तुम कब खड़े हुए थे
किसी तकलीफ़ज़दा इंसान के साथ,
दुख के समय में, औपचारिकता में नहीं,
भरे दिल से हाथों में लिया था किसी का हाथ?
क्या कभी बैठे थे किसी उदास अकेले
आदमी के पास चुपचाप
बिना खोखली सांत्वना का एक शब्द बोले हुए?
क्या पड़ोस के अकेले बूढ़े आदमी की
उजाड़ फुलवारी को ठीक करने में
खुरपी-कुदाल लेकर उसकी मदद की कभी
और अपने घर से थर्मस में लाकर
उसे गर्मागर्म चाय पिलाई
या कभी आग्रहपूर्वक अपने घर बुलाया ?
तुम्हारे घर से महज़ दो किलोमीटर की दूरी पर
जब सरकारी बुलडोज़र ढाई सौ झुग्गियों को
जमींदोज कर रहे थे तो क्या तुमने कुछ नागरिकों को
जुटाकर वहाँ पहुँचने की और सरकारी ज़ुल्म का
विरोध करने की कोशिश की थी?
जब बिजली का सामान बनाने वाली फैक्ट्री से
निकाले गये तैंतीस मज़दूर फैक्ट्री गेट पर
धरना दे रहे थे और नवें दिन
जब पुलिस लाठियाँ बरसाते हुए
उनके टेंट उखाड़ रही थी
तो तुम पास के चायख़ानै में चाय सुड़कते हुए
क्या चुपचाप तमाशा नहीं देख रहे थे?
मुहल्ले के सब्ज़ी वाले, रिक्शे वाले, आटो वाले को
तुम चोर और ठग समझते हो
और लोगों के बीच अक्सर कहते पाये जाते हो कि
टाटा, अम्बानी, अडानी जैसे लोग या तो
अपनी मेहनत से या ईश्वर की कृपा से
या पूर्वजन्मों के फल से समृद्धि के शिखर पर
पहुँचे हैं।
सोसाइटी की उस कमेटी में तुम भी शामिल थे
जिसने यह प्रस्ताव पारित किया था कि
फ्लैटों में काम करने वाले लिफ़्ट की जगह
सीढ़ियों का इस्तेमाल करेंगे।
माना कि गुस्सा तुम्हे भी कई बार आता है
जब बॉस की कृपा या ऊपर से आयी तगड़ी
सिफ़ारिश की बदौलत तुम्हारा जूनियर
तुम्हारे ऊपर की कुर्सी पर जा बैठता है
या तुम्हारे बेटे की प्रतियोगी परीक्षा का
पेपर लीक हो जाता है
या चीज़ों के भाव छलाँग लगाकर ऊपर चढ़ जाते हैं।
तब भी तुम्हें सिस्टम में कोई बुनियादी बुराई
नज़र नहीं आती,
तुम भ्रष्ट नेताओं, अफसरों, दलालों को
गरियाते हो
और कहते हो कि इस मुल्क़ को डंडे के ज़ोर से
ठीक करने के लिए एक तानाशाह की ज़रूरत है।
फिर तुम अपने बेटे को अधिक मेहनत न करने के लिए
पहले धिक्कारते हो और फिर एक
मोटिवेशनल स्पीच देते हो।
वैसे तो तुम एक शान्तिप्रिय और नरम सेक्युलर
नागरिक हो
लेकिन तुम्हारे नरम सेक्युलरिज़्म में
नरम हिन्दुत्व की भी मिलावट है।
तुम कट्टर हिंदुत्व को काफ़ी हद तक मुसलमानों की
कट्टरता की प्रतिक्रिया मानते हो
और मानते हो मुसलमानों को देश में शांति के लिए
अयोध्या के बाद काशी-मथुरा भी हिन्दुओं को सौंप देना चाहिए,
बच्चे कम पैदा करना चाहिए,
वन्दे मातरम् गाते रहना चाहिए
और संख्या बल में अपनी औक़ात देखते हुए
इस हिन्दूबहुल देश में थोड़ा दबदुबकर रहना चाहिए।
तुम मेरिटोक्रेसी को डेमोक्रेसी की आत्मा मानते हो
और बेटे को फर्राटेदार अंग्रेज़ी में बोलने के लिए
रोज़ाना दो घंटे अभ्यास करने के लिए
और पत्नी को थोड़े दिन और जवान
और सेक्सी बने रहने के लिए प्रेरित करते रहते हो।
सोसाइटी की सभी लड़कियों को तुम 'बेटा-बेटा'
कहते हो
लेकिन पार्क में ध्यान और योगासन करने के बाद
किसी बेंच पर बैठकर
जागिंग करती लड़कियों के कूल्हों और छातियो
की गोलाइयाँ
नापते रहते हो।
इस अंधकार, अत्याचार, जनसंहारों, बलात्कारों
और काले क़ानूनों के घटाटोप से भरे,
पुरातन गौरव, गोमूत्र, गोबर, ताक़तवर लोगों के गू,
बलात्कारियों के वीर्य और
नवनात्सी कचड़े में लिथड़े इस देश में
थोड़ी-बहुत तक़लीफ़ उठाकर भी,
अपनी दुनियादारी और अनुभव के बूते
न्याय-अन्याय के चूतियापा भरे विवादों
और राजनीतिक पचड़ों से दूर
तुम लगभग शान्तिपूर्ण पारिवारिक जीवन
बिताते रहे हो लेकिन पिछले कुछ दिनों से
विपत्तियाँ एक के बाद एक, अगर लगातार
तुम्हारे दरवाज़े पर भी दस्तक देने लगी हैं
तो इससे बुरा समय भला क्या हो सकता है
या फिर शायद यह शनि का प्रकोप हो!
सात दिन पहले चौथी बार तुम्हारे बेटे की
प्रतियोगी परीक्षा का पर्चा लीक हो गया।
उसके अगले दिन तुम्हारी बेटी अपने प्रेमी के साथ भाग गयी
तुम्हारे लिए यह संदेश छोड़कर कि 'खूसट
बुड्ढे, मुझे खोजने की कोशिश मत करना।'
तीन दिन पहले सुबह पत्नी ने तुम्हें सूअर कहा
और शाम को बेटे ने कोल्हू का बैल।
परसों तुम्हारी मोटरसाइकिल से हल्की सी टक्कर लग जाने पर
तीन लौण्डों ने गली के मोड़ पर तुम्हारी
ठीक से सुताई कर दी और पचासों तमाशबीनों में से
एक भी तुम्हें बचाने नहीं आया।
कल शाम को सोसाइटी के परिसर में मंदिर-निर्माण के लिए
चंदा माँगने आये लफंगे टाइप लड़कों का झुंड
तुमको धमकाकर पाँच सौ रुपये ऐंठ ले गया
और उनसे बहस करने के चक्कर में तुम्हारा बेटा भी
पाँच-दस मुक्के और दो-चार लप्पड़ खा गया।
फिर भी तुम अगर सारी बुराइयों की जड़
सिस्टम में नहीं देखते,
फिर भी अगर तुम समझते हो कि हर शरीफ़
नागरिक को पॉलिटिक्स के पचड़े से दूर रहना चाहिए
और आन्दोलनों, हड़तालों वगैरा से कुछ नहीं होता,
तो अपने मामूलीपन, दयनीयता और बुज़दिली को
शराफ़त और शान्तिप्रियता की आड़ में
छिपाते-छिपाते तुम सचमुच एक तिलचट्टे में
तब्दील हो चुके हो।
तमाम एहतियात बरतने के बावजूद ऐसे तिलचट्टे
अक्सर बेमौत मारे जाते देखे गये हैं।
जैसे कल ही मैंने देखा कि एक तिलचट्टा
दोनों ओर देखते हुए बेहद सावधानी से
जेब्रापट्टी पर चलते हुए सड़क पार कर रहा था
कि शहर में शान्ति स्थापना के लिए गश्त लगाते फौजी बूट बेख़याली में उसे कुचलते हुए
आगे बढ़ गये।
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(19 Jun 2024)
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