ऐसी एक मौत जैसी कि ज़िन्दगी
मेरे पैरों से जूते नहीं उतारे जाने चाहिए
मेरे मरने के बाद
और मेरी सारी ख़ूबसूरत पसंदीदा टोपियांँ
उस ख़ुशमिज़ाज बूढ़े जादूगर
दे दी जानी चाहिए जो बच्चों की फ़रमाइश पर
रंग-बिरंगी पुरानी टोपियों से
कबूतर और खरगोश
निकालता रहता है।
जलना तो जीने में ही बेहतर होता है।
इसलिए दफ़नाया जाना चाहिए मुझे
भरसक किसी दुर्गम वीरान घाटी में।
और मेरी छतरी और सफ़री झोला भी
साथ रख दिया जाना चाहिए
और वे तमाम डायरियाँ भी
जिनमें ज़िन्दगी और ख़्वाबों के बीच
आवाजाही के तमाम
अविश्वसनीय वृत्तांतों की
ताउम्र इन्दराजी करती रही हूँ।
अहमियत किसी मौत की नहीं,
बल्कि महज़ इस बात की होती है
कि कुछ ज़ाती परेशानियों,
आरज़ी दुखों और
और वक़्ती मायूसियों के बावजूद,
आप ताज़िन्दगी इंसाफ़ के लिए
खड़े रहे, लड़ते रहे।
किसी इंसान की निजता का
नहीं होता है कोई इतिहास
और उनकी स्मृतियाँ भी बस
उन थोड़े से लोगों के लिए ही
कुछ अहमियत रखती हैं
जो जीते जी सबसे क़रीब होते हैं
और सबसे गहरे दुख भी
उन्हीं की देन हुआ करते हैं।
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(3जून, 2024)
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