Thursday, May 09, 2024

एक उदास दृश्यचित्र

 


एक उदास दृश्यचित्र

एक बूढ़े पेड़ के साये तले बैठी हूँ

कूबड़ की तरह उभरी उसकी एक जड़ पर। 

सामने टूटी पड़ी हैं कुछ झोपड़ियाँ

और कुछ कच्चे मकान। 

बाजू में बिखरी-पसरी पड़ी है चाय की वह टपरी

जहाँ अक्सर मैं चाय पीती थी। 

यहाँ अब एक चौड़ी सड़क होगी

और सुखी लोगों के लिए

अपार्टमेंट्स बनेंगे। 

तेज़ हवा के शोर में

दूर से उड़कर आ रही है

किसी औरत के रोने की आवाज़। 

आँसू नहीं मेरे पास

पुरानी रुलाइयों की कुछ यादें हैं

पुराने जख़्मों के दाग़ों की तरह। 

दरबदर लोगों के साथ बिताये गये दिन

अब भी मेरे साथ हैं

और अनकही व्यथाओं से लबरेज़ मेरा दिल। 

सपनों में दुखों का एक समंदर है।

छाती पर दबाव है वज़नी आततायी अँधेरे का। 

डूबने से बचने के लिए

जागकर कुछ नये सपनों की खोज करनी है

और देखना है कि कहाँ फिर से

बस रहे हैं उजाड़ी गयी बस्तियों के बाशिंदे

फिर से ज़िन्दगी शुरू करने की अपनी

चीमड़ ज़िद के साथ। 

**

(9 May 2024)

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