हम कुछ सुन्दर और मानवीय
रचना चाहते हैं
और अगर रच पाते हैं
सचमुच
कुछ भी, थोड़ा भी, सुन्दर और मानवीय,
तो साथ ही अपने लिए
न जाने कितना तो
दुख रच लेते हैं।
**
(27मई, 2024)
No comments:
Post a Comment