दु:खों की किस्में
पानी जैसा दु:ख
आँखों से बह निकलता है।
जो दु:ख बहुत गाढ़ा होता है
जम जाता है ख़ून के थक्कों की तरह
दिल में, फेफड़ों में,
या धमनियों और शिराओं में।
दु:ख जो प्रवहमान होता है ख़ून के साथ
और धड़कते हुए दिल से
दिमाग़ तक का सफ़र तय करता है
वह विचार और कविता में ढलकर
जीवन को गतिमान बनाने के लिए
तमाम-तमाम दिलों के सफ़र पर
निकल जाता है।
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(25मई, 2024)
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