Monday, May 20, 2024

तीन छोटी कविताएँ


(1) 

परिपक्वता के शिखरों की ओर

बढ़ते हुए

हम मृत्यु के कितने निकट

चलते चले जाते हैं। 

(2) 

सोने में आते हैं

मृत्यु के सपने

या अतीत की घटनाएँ 

विरूपित, 

उदास शक्लों में। 

उम्मीदें सिर्फ़ जागने में

साथ रहती हैं। 

(3) 

एक शोकसभा में मिलना हुआ

बरसों बाद। 

बोले वह, "चलिए, ऐसे ही बहानों से

मिलना तो हो जाता है

कम से कम।" 

**

(20मई, 2024)


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