(1)
हृदय को कुतर रही है
समय की गिलहरी।
हर रोज़ एक नया हृदय
होता है मेरे पास।
(2)
छत पर धूप में सूख रही है
मेरी आत्मा की गीली परछाईं।
एक चील गोता लगाती है
निशाना साधकर।
यह तस्वीर दीवार पर कब किसने लगाई
मृत्युभोज में हँसते हुए लोगों की?
(3)
गंधक के सोते में हिलते पैर
मेरे अपने नहीं लगते
इतने साफ़-ओ-शफ़्फ़ाफ़।
गंधक पुराने जख़्मों का संक्रमण
दूर करता है।
झाड़ी से निकल कर भागा है
एक चितकबरा खरगोश।
अरे कहाँ गया मेरा जख़्मी हृदय?
आसमान का रंग इतना जामुनी
कैसे हो गया?
(4)
पिता की छड़ी मेरा पीछा कर रही है।
छुपकर बैठी हूँ फालसे के पेड़ पर।
पुरानी दुनिया के निशानात मिटाते हुए
काटना पड़ा बचपन का वह शरण्य।
मेरे सपनों का घोसला है
किसी फालसे के पेड़ पर।
उसे खोजती हूँ।
मुझे मेरी जन्मभूमि की याद नहीं।
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(18 मई, 2024)
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