...
रोज़नामचा में दर्ज कुछ राज़ की बातें
अपने आँसुओं को डाल दिया है
मैंने सीपियों के अधखुले मुँहों में
मोती बनने के लिए।
लोग मुझे ज़मीनी औरत बताते हैं
और मैं नहीं बताती कि मैं
एक समुद्री जीव हूँ।
धरती पर बस आना-जाना होता है
जहाँ अलग-अलग मौसमी बसेरे हैं
मेरे पूर्वजों के बनाये हुए।
एक रहस्यमय समंदर की गहराइयों में
निवास है मेरा
वनस्पतियों, अज्ञात समुद्री जीवों,
डूबे हुए जहाज़ों के मलबे,
टूटे हुए दिलों, हारी गयी लड़ाइयों के इतिहास की किताबों,
प्रेम के अधूरे आख्यानों,
न पूरा हुए वायदों की मजबूरियों,
पुरखों के वसीयतनामों
और खोये हुए रास्तों के नक़्शों के साथ।
घने मैंग्रोव वनों, अलग-अलग नदियों
के डेल्टा प्रदेशों और वेटलैण्ड्स से होकर
मैं सागर और धरती के बीच
आवाजाही करती रहती हूँ।
एक ही साँस में करती हूँ
प्यार और मृत्यु की बातें
और धरती की धड़कनें सुनती हूँ
और आत्माओं की जासूसी करती हूँ।
तानाशाह जब शयनकक्ष में
नंगे पड़े होते हैं
मैं उनकी पिस्तौलें चुरा लेती हूँ।
कचरे की ढेरी पर सूअर जब चुनते होते हैं
कविता के लिए बिम्ब
और सुनहरा लबादा पहने कछुए जब
राजभवनों की ओर प्रस्थान कर रहे होते हैं
पुरस्कृत होने के लिए,
मैं अपने समंदर की ओर चल देती हूँ
जहाँ तूफ़ान इन्तज़ार कर रहा होता है
किसी विकल प्रेमी की तरह
समुद्री घास और फूलों से बना
एक सुंदर मुकुट लिए हाथों में,
मूँगे के एक मण्डप में।
**
No comments:
Post a Comment