Wednesday, April 03, 2024

भाषा-विमर्श

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पाँड़े जी के साथ भाषा-विमर्श

रामसुभग पाँड़े प्राइमरी स्कूल में मास्टर हैं। 

हिन्दी भाषा की अवनति को भी

हिन्दुओं की अवनति की

एक अहम वजह मानते हैं। 

आम तौर पर संस्कृतनिष्ठ हिन्दी बोलते हैं

जिसे "शुद्ध हिन्दी" कहते हैं

लेकिन अपनी निखट्टू औलाद

और गँवार पत्नी को खाँटी अवधी में

गरियाते हैं। 

एक दिन मिले तो कहने लगे 

कि जवाहरलाल नेहरू ने

हिन्दी में उर्दू की मिलावट को बढ़ावा दिया

क्योंकि उनके ख़ून में मुसल्लों के 

ख़ून की मिलावट थी। 

ऐसी बहुत सी मिसालें उनके पास थीं

जैसे यह कि फ़िराक़ गोरखपुरी अपने

ज़मीन्दार पिता की नाजायज़ औलाद थे

एक मुसलमान बाँदी से

और गाय खाते थे

इसीलिए उर्दू में शायरी करते थे

और निराला उनसे बेहद चिढ़ते थे। 

बहस से कुछ निकलना नहीं था इसलिए

मैंने कहा, "पाँड़े जी, मैं विधर्मी नहीं

घोर अधर्मी हूँ। 

गाँजा फूकेंगे? 

आइए, चिलम चढ़ाते हैं। 

चार-पाँच सुट्टा मारने के बाद ही मैं

ऐसे गंभीर विषयों पर बहस कर पाती हूँ। 

उसके बाद पहले पवित्र देवभाषा में गरियाती हूँ

फिर शुद्ध हिन्दी में

और फिर खाँटी भोजपुरी पर आ जाती हूँ।"

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(3 Apr 2024)

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