Wednesday, April 03, 2024

अतिरेकों के युग की कुछ अच्छी-बुरी चीज़ें...


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अतिरेकों के युग की कुछ अच्छी-बुरी चीज़ें, कुछ विस्मयकारी विशिष्टताएँ और शरीफ़ लोगों की कुछ उदात्त दुविधाएँ

... यहाँ तक कि पुरातन चेहरे वाली

आधुनिकतम बर्बरता और दुनिया के सबसे

बेशर्म बौद्धिक समझौतों की

अनदेखी करते हुए बहुतेरे भले लोगों ने भी

करुणा, प्यार, मनुष्यता, चित्त की शान्ति आदि की

आध्यात्मिक बातें करने की आदत डाल ली है। 

हमारे समय की उदासी 

हँसता हुआ चेहरा लिये घूमती है। 

दुख अपनी सामाजिकता खो चुके हैं। 

किसी का फट नहीं पड़ेगा कलेजा

न दोस्ती भरा कोई हाथ थाम लेगा हाथ

अगर दिल टूटने और पुराने दिनों में

 चुपचाप प्यार करते चले जाने के

कुछ किस्से सुना दिये जायें। 

दिल खोल कर रख देने की

सोचें भी तो कैसे, 

परदे के पीछे चाकू लिये हाथों में

हत्यारे की परछाईं साफ़ दीख रही है

और उधर एक प्रतिशोधी आलोचक पूरी तैयारी के साथ घात लगाये बैठा है। 

कोई कीड़ा रात के सन्नाटे में

आत्मा को 'किर्र-किर्र' काटता रहता है

और आप चाहते हैं कि हम सहजता

और ताज़गी के साथ जीते रहें

और पुरस्करणीय कविताएँ लिखते रहें। 

सनातनी लोकतंत्र में दान-पुन्य के मद की

अच्छी-ख़ासी रकम कला-साहित्य की सेवा में

लगा रही हैं सुसंस्कृत समृद्ध शक्तिशाली 

लोगों की संस्थाएँ और सरकारें। 

लेकिन फ़िलहाल बेहतर यही होगा कि

साहित्य अकादमी या किसी लिट फेस्ट में

जाने के बजाय बागेश्वर धाम वाले बाबा

या श्री श्री, सद्गुरु -- किसी के भी

आश्रम में चले जायें

या फिर चार धाम की यात्रा ही कर आयें। 

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(3 Apr 2024)

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