Thursday, April 25, 2024

अराजनीतिक होने की राजनीतिक विडम्बना

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अराजनीतिक होने की राजनीतिक विडम्बना

चाय की प्याली के किनारे पर

मैथुनरत मक्खियों का जोड़ा

अपनी स्थिति की सजगता खो देता है

बस पल भर के लिए

और गर्म चाय में गिरकर

जीवन से हाथ धो बैठता है। 

फ़ासिज़्म के मौसम में

मासूम, कोमल, उद्दाम आतुरता भरी

प्रेम कविता लिखने में डूबे रहने वाले

भोलेभाले अराजनीतिक कवि भी

इसीतरह मौत के जाल में जा  गिरते हैं अक्सर। 

चतुर सुजान तो जानते हैं कि

आने वाली किसी भी आपदा से कैसे बचें

और आपदा अगर टलने वाली हो पक्के तौर पर

तो किस तरह उससे संघर्ष करने वालों की

सूची में अपना नाम दर्ज करा लें। 

अक्सर तो उनके नाम आतताइयों के

ख़ास सांस्कृतिक जलसों में आमंत्रित

विशिष्ट अतिथियों की सूची में भी दर्ज रहते हैं

और प्रतिरोध सभा के अध्यक्षमण्डल में भी

वे सादर बिराजते होते हैं। 

जब वे राजनीतिक बातें करते हैं

तो नायाब मौलिक बातें करते हैं

जैसे हर सत्ता होती है सर्वसत्तावादी, 

चाहे वो फ़ासिस्ट हो या समाजवादी

और यह भी कि फ़ासिज़्म के लिए

मुख्यतः मूढ़ जनता ही ज़िम्मेदार होती है

और फिर कहते हैं कि कविता तो हर हालत में

सत्ता के प्रतिपक्ष में होती है

और मनुष्यता और प्यार और सौन्दर्य के

पक्ष में होती है। 

उनके पास बच निकलने के बहुतेरे

जुगत और जुगाड़ होते हैं। 

लेकिन जो सच्चे अराजनीतिक जंतु होते हैं

वे अधिकांशतः घामड़ और 

बागड़बिल्ला टाइप होते हैं

और अक्सर वही फँसते हैं। 

ताकतवर लोग उन्हें घास नहीं डालते

और जब आम लोगों की पारी आती है

तो वे उन्हें या तो एकाध झाँपड़ लगा देते हैं 

या हिकारत से उनपर खैनी थूक देते हैं। 

इसतरह जब उन्हें पता चलता है कि

ऐतिहासिक

राजनीतिक महाविपत्तियों से

अराजनीतिक होकर नहीं बचा जा सकता, 

तबतक बहुत देर हो चुकी रहती है। 

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(25 Apr 2024)


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