हमारे फ़ासिस्ट समय की कुछ चीज़ें, मसलन प्यार
पार्कों में हत्यारे घूमते रहते थे।
हमें जंगली फूलों से भरे सुनसान क़ब्रिस्तान तक
जाना पड़ता था आत्मीय एकांत की तलाश में
कई उजाड़ दी गयी बस्तियों और
ढहा दिये गये धर्मस्थलों के मलबे को
पार करते हुए।
कभी किसी इतवार हम नदियों तक
जाने का समय भी अगर निकाल पाते थे तो
हमारी डोंगियों से गँदले पानी में उतराती लाशें
टकराती रहती थीं और कई बार वे
सदियों से जमी
ऐतिहासिक गाद में फँस जाया करती थीं।
मनुष्य की तरह जीना और सच्चे दिल से
प्यार करना और दोस्तियाँ निभाना
एक ख़तरनाक और बेहद जोखिम भरा
काम बना रहा हमारे समय में।
सबकुछ शास्त्रोक्त विधि-विधान से करने का
निर्देश दिया गया था नागरिकों को
और यह ध्यान रखना था कि राष्ट्रीय गौरव को
कोई आँच न आये।
इसमें हमारा कोई दोष नहीं था कि हम
एक फासिस्ट समय में पल -बढ़कर बड़े हुए थे और
प्यार करने की उम्र तक का सफ़र तय किया था।
बस इस बात का संतोष था हमें कि
अजातशत्रु महाकवियों की अलौकिक
प्रेम कविताओं से दूर रहे हम हमेशा,
कला महोत्सवों के लिए कुजात बने रहे
और ताक़तवर लोग हमें संदिग्ध और
ख़तरनाक मानते रहे।
विपत्तिग्रस्त अभागों की अँधेरी दुनिया में
हमारा बसेरा रहा ज़्यादातर समय
लेकिन बग़ावत की तैयारियों में
मशग़ूल होने के बावजूद हमने
प्यार का उतना तज़ुर्बा तो हासिल
कर ही लिया कि हत्यारों की गोली से
मरने के ठीक पहले के पलों में मुस्कुरा सकें
कुछ दिनों का कोई संग-साथ,
कोई प्रसंग या कोई प्यारी सी बात याद करके,
या क़ैद-ए-तनहाई में भी
प्यार का कोई बेइंतहा ख़ूबसूरत और दिलक़श
गीत गा सकें
दिल की पूरी गहराई से,
फेंफड़ों की पूरी ताक़त से।
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(19 Jan 2024)
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