Thursday, January 18, 2024

नारीहरूका प्रेम कविताहरू वारे


नेपाली कवि, अनुवादक, ऐक्टिविस्ट कामरेड बलराम तिमल्सिना ने मेरी इस कविता का ख़ूबसूरत नेपाली अनुवाद किया है। नीचे मैंने मूल कविता भी है। 

नारीहरूका प्रेम कविताहरू वारे 

एउटा तीतो,अप्रिय तथा बास्तविक कविता ।

जब नारीहरू कविता लेख्छन 

प्राय जसो

ती कविताहरू 

भावनाले लछप्प भिजेका 

र बनावटी हुने गर्दछन् 

किन कि -

ती कवितामा 

जुन कुरा तिनीहरू लेख्न चाहन्छन 

र लेखेर मन हलुका बनाउन चाहन्छन 

ती कुनै पनि कुरा हुदैनन् ।

त्यसैले 

प्रेम कविता लेखिसकेपछि 

उनीहरूको मन 

अझ गह्रुङ्गो र अझ उदास हुन पुग्छ।

नारीहरूले 

आफ्नो सच्चा प्रेमीकै लागि 

प्रेम कविता लेख्छन भने पनि 

जति चाहे पनि

त्यसमा भएका भएका कुरा लेख्दैनन्

सायद उनीहरू जोसँग प्रेम गर्छन 

उसलाई दु:खी बनाउन चाहदैनन् ।

सायद उनीहरू 

आफ्नो प्रेमीसँग विश्वास पनि गर्दैनन्

या आफ्नो जिन्दगीका

ती सारा कुरुपताहरू अरु कसैसँग पोखेर

अझ बढी असुरक्षित हुन चाहदैनन् ।

या त हुन सक्छ

आफैंले छलछाम गरेर 

कुनै अदृश्य अत्याचारीसँग बदला लिन चाहन्छन‌।

नारीहरू 

एउटा लामो शोक गीत  बन्ला 

र दिग-दिगान्तसम्म 

एउटा दीर्घ विलाप गुञ्जेला कि भन्ने डरले

कैयौं पटक सच्चा प्रेम कविता लेख्दैन‌न्‌ ।

नारीहरू चाहन्छन

यस्तो यथार्थ प्रेम कविता लेख्न सकियोस

जुन कवितामा 

मनका सारा बदमासीहरू

कल्पनाहरू ,उडानहरू 

आफ्ना समस्त कमजोरीहरू

र पछुतोहरूको 

खुलस्त बयान होस 

त्यो पनि 

वाल्यकालदेखि युवती होउन्जेलसम्म 

कहिले कहिले

कहाँ कहाँ 

अँध्यारोमा ,भीडभाडमा ,

एक्लो हुँदा ,सुनसानको समयमा 

होहल्लाको बीचमा ,यात्रामा 

घरमा ,रातमा ,दिनमा 

कस‌ कसले

उनीहरूलाई थिचे,

अँठ्याए ,

माडमुड पारे,

कुल्चे,

घिसारे,

ताछे,पिटे, निचोरे चिथोरे

अनि कतिले

कति पटक 

उनीहरूलाई‌ ढाँटे,धोका दिए‌

उल्लू बनाए 

पाठ पढाए र मोलमोलाई गरे ।

प्रेम कविता लेखेर नारीहरू

आफ्नो शरीरकोभन्दा बढी

आफ्नो आत्माका दागहरू देखाउन चाहन्छन ,

तर त्यसको विनासकारी परिणाम सम्झेर झस्किन्छन‌।

नारीहरू प्रेम कविता लेख्दा 

प्राय जसो 

भावनाहरूको निस्फिक्री बयान होइन

बरु बाँच्ने एउटा कला 

या औजारको रुपमा लेख्छन ।

अनि 

गजबका प्रेम कविता लेख्ने दावा गर्ने

जो जो कलम- धुरन्धरहरू छन 

तिनीहरू प्राय 

कुनै अर्थोकै कुरालाई प्रेम हो भनेर बुझ्छन 

र जिन्दगीभरि 

त्यही भ्रममा बाँचिरहन्छन‌ ।

अपवाद स्वरुप 

कुनै समृध्द कुलीन नारीहरू 

शक्तिसाली पनि बन्छन 

तिनीहरू प्रेम गर्नका लागि

एक या एकभन्दा बढी पुरुषहरू पाल्छन् 

या त धेरै पुरुषहरू

तिनलाई प्रेम गर्न लालयित हुन पुग्छन् ।

ती नारीहरू पनि 

उमेरको एउटा खास 

राम रमाइलोमा बिताइसके पछि

प्रेमको अभावमा 

बाँकि सारा उमेर तड्पिरहन्छन 

र त्यो कुराको भर्पाई

सत्ता,सम्भोग र प्रसिध्दिले गर्छन ।

वास्तविक प्रेम कविता लेख्न

नारीहरू यथार्थवादी बन्न चाहन्छन्

तर बाँच्नु पर्ने शर्तले

उनीहरूलाई 

या त छायाँवादी बनाइदिन्छ

या ह उत्तर आधुनिक बनाइदिन्छ।

जे कुरा पाइदैन 

त्यसलाई उत्तर-सत्य भनिदिएपछि

अलिकति भने पनि राहत त हुने नै भयो।

सोच्ने गर्छु-

एसएमएस र ह्वाट्सअपले

जसरी प्रेमपत्रलाई सिध्यायो

अब त्यस्तै कुनै नयाँ लहर आवस

संसारको कुरुपतालाई

अझ नाङ्गो बनाइदियोस

नक्कली प्रेम कविताको पाखण्ड लगायत

अरु सबै कुरालाई मेटाइदेओस 

र प्रेम कवितामा 

यथार्थमै प्रेमलाई भित्र्याओस ।

**

मूल कविता:

|| स्त्रियों की प्रेम कविताओं के बारे में एक अप्रिय, कटु यथार्थवादी कविता ||

आम तौर पर स्त्रियाँ जब प्रेम कविताएँ लिखती हैं 

तो ज़्यादातर, वे भावुकता से लबरेज़ 

और बनावटी होती हैं क्योंकि 

उनमें वे सारी बातें नहीं होती हैं 

जो वे लिख देना चाहती हैं और 

लिखकर हल्का हो लेना चाहती हैं |

इसलिए प्रेम कविताएँ लिखने के बाद 

उनका मन और भारी, और उदास हो जाता है |

स्त्रियाँ जब अपने किसी सच्चे प्रेमी के लिए भी 

प्रेम कविताएँ लिखती हैं 

तो उसमें सारी बातें सच्ची-सच्ची नहीं लिखतीं 

चाहते हुए भी

शायद वे जिससे प्रेम करती हैं 

उसे दुखी नहीं करना चाहतीं 

या शायद वे उसपर भी पूरा भरोसा नहीं करतीं,

या शायद वे अपनी ज़िंदगी की कुरूपताओं को 

किसी से बाँटकर 

और अधिक असुरक्षित नहीं होना चाहतीं, 

या फिर शायद, वे स्वयं कपट करके किसी अदृश्य 

अत्याचारी से बदला लेना चाहती हैं |

स्त्रियाँ कई बार इस डर से सच्ची प्रेम कविताएँ नहीं लिखतीं 

कि वे एक लंबा शोकगीत बनने लगती हैं, 

और उन्हें लगता है कि दिग-दिगन्त तक गूँजने लगेगा 

एक दीर्घ विलाप |

स्त्रियाँ चाहती हैं कि एक ऐसी 

सच्ची प्रेम कविता लिखें 

जिसमें न सिर्फ़ मन की सारी आवारगियों, फंतासियों,

उड़ानों का, अपनी सारी बेवफ़ाइयों और पश्चातापों का बेबाक़ बयान हो, बल्कि यह भी कि 

बचपन से लेकर जवान होने तक 

कब, कहाँ-कहाँ, अँधेरे में, भीड़ में , अकेले में, 

सन्नाटे में, शोर में, सफ़र में, घर में, रात में, दिन में,

किस-किस ने उन्हें दबाया, दबोचा, रगड़ा, कुचला, 

घसीटा, छीला, पीसा, कूटा और पछींटा

और कितनों ने कितनी-कितनी बार उन्हें ठगा, धोखा दिया,

उल्लू बनाया, चरका पढ़ाया, सबक सिखाया और 

ब्लेकमेल किया |

स्त्रियाँ प्रेम कविताएँ लिखकर शरीर से भी ज़्यादा

अपनी आत्मा के सारे दाग़-धब्बों को दिखलाना चाहती हैं 

लेकिन इसके विनाशकारी नतीज़ों को सोचकर 

सँभल जाती हैं |

स्त्रियाँ अक्सर प्रेम कविताएँ भावनाओं के 

बेइख़्तियार इज़हार के तौर पर नहीं 

बल्कि जीने के एक सबब, या औज़ार के तौर पर लिखती हैं |

और जो गज़ब की प्रेम कविताएँ लिखने का 

दावा करती कलम-धुरंधर हैं 

वे दरअसल किसी और चीज़ को प्रेम समझती हैं 

और ताउम्र इसी मुगालते में जीती चली जाती हैं |

कभी अपवादस्वरूप, कुछ समृद्ध-कुलीन स्त्रियाँ 

शक्तिशाली हो जाती हैं, 

वे प्रेम करने के लिए एक या एकाधिक 

पुरुष पाल लेती हैं या फिर खुद ही ढेरों पुरुष

उन्हें प्रेम करने को लालायित हो जाते हैं |

वे स्त्रियाँ भी उम्र का एक खासा हिस्सा 

वहम में तमाम करने के बाद 

प्रेम की वंचना में बची सारी उम्र तड़पती रहती हैं 

और उसकी भरपाई प्रसिद्धि, सत्ता और 

सम्भोग से करती रहती हैं |

स्त्रियाँ सच्ची प्रेम कविताएँ लिखने के लिए 

यथार्थवादी होना चाहती हैं, 

लेकिन जीने की शर्तें उन्हें या तो छायावादी बना देती हैं 

या फिर उत्तर-आधुनिक |

जो न मिले उसे उत्तर-सत्य कहकर 

थोड़ी राहत तो मिलती ही है !

सोचती हूँ, एस.एम.एस. और व्हाट्सअप ने 

जैसे अंत कर दिया प्रेम-पत्रों का, 

अब आवे कोई ऐसी नयी लहर 

कि नक़ली प्रेम कविताओं का पाखण्ड भी मिटे 

और दुनिया की वे कुरूपताएँ थोड़ी और 

नंगी हो जाएँ जिन्हें मिटा दिया जाना है 

प्रेम कविताओं में सच्चाई और प्रेम को 

प्रवेश दिलाने के लिए |

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