Sunday, December 03, 2023

कविता के दरवाज़े


 कविता के दरवाज़े

नास्टेल्जिया से यूटोपिया के सीमान्तों तक

फैला है स्मृतियों और कल्पनाओं का

जादुई प्रदेश! 

झील की तलहटी में

पिछली सदी से सोये पड़े हैं

हुनरमंद कारीगर और कुशल योद्धा

और दु:स्वप्नों के इन्द्रजाल से 

बाहर आने के लिए

दीवारों में कोई दरवाज़ा टटोल रहे हैं। 

कुछ चीखते हैं निष्फल 

क्योंकि पुकारने के लिए

कोई नाम याद नहीं आता

लाख कोशिशों के बावजूद

और चेहरे जो परिचित लगते हैं

उन्हें पुकारने के लिए 

कोई भी उपाय नहीं है उनके पास। 

नींद से बाहर के रहस्यमय प्रदेश में

यथार्थ की दुनिया को रौंदते हुए

हत्यारों के दल घुस आये हैं। 

कुछ पुराने योद्धा पुराने हथियारों से

नयी लड़ाइयाँ लड़ने की जुगत 

भिड़ा रहे हैं 

और जिन्हें शब्दों की शक्ति से 

लोगों को जगाना था 

उनमें से ज़्यादातर आतताइयों की ड्योढ़ी पर 

भिखमंगों की कतार में खड़े हैं

कुछ बख़्शीश पाने की उम्मीद में। 

नींद में जीवन का रौरव रोर है

और कुछ वहशी परछाइयाँ। 

व्यर्थ हैं कविता में सपनों की बातें। 

वहाँ नींद से बाहर लाने वाली

एक चीख होनी चाहिए

बीहड़ यथार्थ में वापस लाने वाली । 

**

(3 Dec 2023)

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