Tuesday, November 07, 2023

पुराने रेस्तरां में कुछ अदृश्य उपस्थितियाँ

पुराने रेस्तरां में कुछ अदृश्य उपस्थितियाँ

वे भूतपूर्व प्रेमी-प्रेमिका थे

जो बैठे थे दिन के कगार पर

शाम की ढलान पर

नदी किनारे उस दिन

उस पुराने रेस्तरां में जो अभी भी वैसा ही था

जैसा बीस वर्षों पहले हुआ करता था। 

मिले थे वे बरसों बाद

और इस बीच बहुत कुछ बदल चुका था, 

जीवन की आपदाएँ भी। 

और बहुत सारी चीज़ें भूतकाल में

जा चुकी थीं, 

कुछ विस्मृति के अँधेरे में गुम हो चुकी थीं

और कुछ फ़िलहाल स्मृतियों की सराय में

ठहरी हुई थीं। 

उनके बीच करने को कुछ ज़रूरी और कुछ रुचिकर बातें थीं, मसलन, मार्क्सवाद के बारे में, 

हिन्दुत्ववादी फ़ासिज़्म और हत्याओं के 

मौसम के बारे में, 

ब्रेष्ट और वाल्टर बेन्यामिन के बारे में, 

तदेउष रूज़ेविच और शिम्बोर्स्का की कविताओं की

समकालीनता और कुछ खटकने वाली चीज़ों

और फिर भी उनके प्रिय लगने के

कारणों के बारे में 

और उस ज़रूरी काम के बारे में जिसके लिए

मिलना मुमकिन हुआ था। 

घाटी के माहौल और पर्यावरण में

आये बदलावों के बारे में भी

उन्होंने बातें की लेकिन उस तरह नहीं जैसे

करने को कोई बात न होने की हालत में

वक़्त काटने के लिए मौसम की बातें

की जाती हैं। 

न उन्होंने अपनी ढलती उम्र के बारे में

कोई बात की, न एक-दूसरे की सेहत के बारे में

कोई दरयाफ़्त! 

ऐसा भी कुछ नहीं कहा कि वे एक-दूसरे को

याद करते हैं कभी-कभी अब भी, 

न ही यह बताया कि अब भी वे

फ़िक्रमंद रहते हैं एक-दूसरे को लेकर, 

न ही यह राज़ जाहिर किया कि वे

इस मुलाक़ात को लेकर कुछ उतावले

और कुछ ख़ुश और कुछ उदास भी थे। 

ऐसी भी कोई बात नहीं हुई कि

ऐसा क्यों हुआ और वैसा क्यों हुआ

गुज़र चुके दिनों में

और ऐसी कोई बात तो कतई नहीं कि इसकी या

उसकी कोई ग़लती थी या नहीं। 

बस इतना ज़रूर था कि बरसों जहाँ

बैठते रहे थे, उस पुराने रेस्तरां की

कॉफ़ी की उसी पुरानी गंध के साथ

उपस्थित होता रहा अदृश्य सा

उनका भूतपूर्व प्यार

अभूतपूर्व रूप में, बीच-बीच में

कुछ-कुछ देर को वहाँ उस शाम

जिसे आगे बहुत दिनों तक याद रखा जाना था, 

या शायद हमेशा, 

ज़िन्दगी की तमाम भागदौड़ और मुश्क़िलात

और आशुफ़्तगियों के बीच। 

**

(7 Nov 2023)


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