Thursday, October 12, 2023

क़िस्सागोई का क़सीदा


 क़िस्सागोई का क़सीदा

जो लोग पुरलुत्फ़ क़िस्से सुनाया करते थे उनमें से ज़्यादातर अब क़ब्रिस्तानों में दफ़्न हैं। और जो ज़िन्दा बचे हुए हैं वे क़ब्र खोदने का काम करते हैं या शराबख़ानों के बाहर चखना बेचते हैं या कचहरियों में मजमा लगाकर मर्दाना कमज़ोरी की दवाइयाँ। उनकी याद्दाश्त जाती रही, क़लमों की रोशनाई सूख गयी, काग़ज़ गाय खा गयी और ज़ुबान को लकवा मार गया। 


जो निपट दार्शनिक होते हैं वे कहानियाँ नहीं सुनाते। सुना ही नहीं सकते! 


कवि कोई कहानी लेकर आगे बढ़ते हैं और अक्सर वह रूपकों और बिम्बों की गिरफ़्त में क़ैद हो जाती है। 


चित्रकार प्रायः चरित्र-चित्रण या परिवेश-चित्रण तक सीमित रह जाते हैं और संगीतकार अक्सर सिर्फ़ इंगित करके छोड़ देते हैं । 


जिनकी ज़िन्दगी से बनती हैं कहानियाँ, उनमें ही पाये जा सकते हैं ऐसे कुछ लोग जो सुना सकते हैं सबसे दिलचस्प, रहस्यमय, सस्पेंस भरी,खुले सिरों वाली कहानियाँ, बशर्ते कि उन्हें अवसर मिले। सिर्फ़ वे ही जानते हैं कि जीवन के किन तत्वों से बनती हैं प्रामाणिक और विश्वसनीय कहानियाँ। 


सच्चे क़िस्सागो के क़िस्सों में बयान की गयी हक़ीक़त में ही इतना जादू होता है कि बाहर से उनमें कोई जादू नहीं डालना पड़ता। उनकी नज़र स्वाभाविक जीवन-जगत के जादू को तलाश लेती है और उसे एकदम अपने श्रोता की आँखों के सामने खोल देती है। 


सच्चा क़िस्सागो आपको हँसाता या रुलाता नहीं। वह आपके सामने हँसने और रोने की क्रिया को पेश करते हुए दरअसल उनकी प्रक्रिया को पेश करता है। 


ज़िन्दगी से क़िस्सागोई के हुनर का छीजते जाना बताता है कि लोग सपनों और कल्पनाओं से दूर होते जा रहे हैं और खुशमिज़ाजी और ज़िन्दादिली जैसी कुछ चीज़ों को तो हम लगभग भूलते ही जा रहे हैं इस शापित समय में। 


एक अच्छा क़िस्सागो ही हमें यह बता सकता है कि मनहूसियत भरी कर्तव्यनिष्ठा के साथ जो सोचते हैं एक नयी दुनिया बनाने के बारे में, वे ही एक दिन उदासी, मायूसी और थकान से भरकर इस नतीजे पर पहुँचते हैं कि यह मुमकिन नहीं। या फिर कहने लगते हैं कि हमसे न होगा। 

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(12 Oct 2023)


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