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वह समय और था
और लगता है कि मुल्क़ भी कोई और ही था।
तब वहाँ मेरी तरह की बारिश थी
और तुम्हारी तरह की मिट्टी।
धूप गुनगुनी थी आत्मीय छुअन जैसी।
और वह भी एक ज़माना था
जब निराशा और कपट और क्रूरता का
इतना अधिक घटाटोप नहीं था
और अक्सर चीज़ें लम्बे समय तक स्मृतियों में
यूँ ठहर जाया करती थीं जैसे
किसी छोटे से रेलवे स्टेशन पर
देर तक खड़ी रह जाती है
तरह-तरह के सामानों से भरी
कोई मालगाड़ी।
तब हमने गुप्त रहस्यमय कार्रवाई की तरह
एक-दूसरे से जल-सा पारदर्शी प्यार किया।
विपत्तियों के बादल
आते थे उमड़-घुमड़कर कई बार।
हम भीगते, फिर सूखते थे।
रातें इंतज़ार की हुआ करती थीं।
पत्तों की नोक से ओस की बूँद कभी-कभी
टपक पड़ती थी सहसा सपनों में आँसू की तरह।
चीड़ के जंगलों से तैरती हुई
जलते पिरुल की गंध पहाड़ों से
घाटी तक उतर आती थी कई बार
जहाँ गुप्त दुखों और अतृप्तियों के रहस्यमय
घर हुआ करते थे।
आज फिर बारिश हो रही है।
वृक्षहीन, नंगे पहाड़ों से
मिट्टी कटकर बहती हुई आ रही है नीचे
जैसे हृदय में उतर रही हों यादें।
जहाँ प्यार का नीरव एकांत था
वहाँ जीवन का कोलाहल है।
जब-जब बिजली कड़कती है आकाश में
सामने के वीरान खण्डहर की टूटी खिड़की का
अकेला साबुत शीशा
भरपूर ललक के साथ चमकता है
निरुपाय संशय के अँधेरे में कौंधते
किसी विचार की तरह,
या जैसे बहुत दिनों से भूला हुआ कोई प्रसंग
अचानक याद आ गया हो।
**
(31 Oct 2023)
वह समय और था
और लगता है कि मुल्क़ भी कोई और ही था।
तब वहाँ मेरी तरह की बारिश थी
और तुम्हारी तरह की मिट्टी।
धूप गुनगुनी थी आत्मीय छुअन जैसी।
और वह भी एक ज़माना था
जब निराशा और कपट और क्रूरता का
इतना अधिक घटाटोप नहीं था
और अक्सर चीज़ें लम्बे समय तक स्मृतियों में
यूँ ठहर जाया करती थीं जैसे
किसी छोटे से रेलवे स्टेशन पर
देर तक खड़ी रह जाती है
तरह-तरह के सामानों से भरी
कोई मालगाड़ी।
तब हमने गुप्त रहस्यमय कार्रवाई की तरह
एक-दूसरे से जल-सा पारदर्शी प्यार किया।
विपत्तियों के बादल
आते थे उमड़-घुमड़कर कई बार।
हम भीगते, फिर सूखते थे।
रातें इंतज़ार की हुआ करती थीं।
पत्तों की नोक से ओस की बूँद कभी-कभी
टपक पड़ती थी सहसा सपनों में आँसू की तरह।
चीड़ के जंगलों से तैरती हुई
जलते पिरुल की गंध पहाड़ों से
घाटी तक उतर आती थी कई बार
जहाँ गुप्त दुखों और अतृप्तियों के रहस्यमय
घर हुआ करते थे।
आज फिर बारिश हो रही है।
वृक्षहीन, नंगे पहाड़ों से
मिट्टी कटकर बहती हुई आ रही है नीचे
जैसे हृदय में उतर रही हों यादें।
जहाँ प्यार का नीरव एकांत था
वहाँ जीवन का कोलाहल है।
जब-जब बिजली कड़कती है आकाश में
सामने के वीरान खण्डहर की टूटी खिड़की का
अकेला साबुत शीशा
भरपूर ललक के साथ चमकता है
निरुपाय संशय के अँधेरे में कौंधते
किसी विचार की तरह,
या जैसे बहुत दिनों से भूला हुआ कोई प्रसंग
अचानक याद आ गया हो।
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(31 Oct 2023)

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