Monday, October 23, 2023

छोटी-छोटी चाहतें और छोटी-छोटी परेशानियांँ

छोटी-छोटी चाहतें और छोटी-छोटी परेशानियांँ
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प्रेम में अभी भी मुझे इन्तज़ार रहता है

एक मामूली आदमी के यूटोपिया की तरह

और यह नामुराद मामूलीपन तो

ऐसा लाइलाज मर्ज़ है 

कि बाज़ वक़्त एकदम ग़ैरमामूली ढंग से

मामूली हो जाने का ख़याल

शैतान की तरह सिर पर सवार हो जाता है। 

और इस ख़ूनी सैलाब के, 

घिनौने बेशर्म समझौतों के युग के, 

डरावनी शोभायात्राओं के, 

विचारहीनता की ऋतुओं के और

कृतज्ञता के बोझ से झुके लोगों की कतारों के

गुज़र जाने का इन्तज़ार अभी भी

मुझे रहता है। 

मुझे राजधानी की ओर जाने के लिए

प्लेटफार्म पर खडी़ नेताओं, व्यापारियों और

प्रवासी मज़दूरों से भरी ट्रेन की रवानगी का, 

शोक प्रकट करने आये कर्तव्यनिष्ठ 

नागरिक के चुप होने का, 

मंच पर जम्हाई लेते और कविता पढ़ते

कवियों के मुँह

और अख़बारी साप्ताहिक साहित्यिक कालम

और शेयर बाज़ार, बैंकों और टोल बूथों के

बंद हो जाने का इन्तज़ार हमेशा रहता है। 

और मैं चुटकुलों पर, 

विचारहीन हँसी पर, 

सीरियल्स और फिल्मों के सीक्वेल बनने पर

रोक लगने का भी इन्तज़ार कर रही हूँ

और हर नयी तकनोलॉजी और रहन-सहन में

आने वाले बदलावों को अनिवार्य मानते हुए भी

दिल से चाहती हूँ कि लाल लेटर बॉक्स, डाकिये, 

साइकिलें, फालसे के पेड़, अमरूद के बाग, 

कसम खाने की आदत और ऐसी ही 

कुछ और पुरानी चीज़ें बची रहें, 

प्रेम में वफ़ादारी बची रहे, 

और आसमान से कहर भले ही टूट पड़े

लेकिन वक़्त के साथ चलने और 

प्रैक्टिकल बनने की नसीहत देने के लिए

कोई कनखजूरा पैगम्बर का 

चोंगा पहनकर न आ जाये मेरे घर, 

या हालचाल पूछने पर 'आपकी कृपा है' कहकर

कोई मुझे भीषण अपराध-बोध से न भर दे। 

मानती हूँ कि महज़ इतने से दुनिया

बहुत सुन्दर और न्यायपूर्ण नहीं हो जायेगी, 

या कोई बहुत बड़ी चीज़ नहीं हासिल हो जायेगी

लेकिन हाथ की पहुँच से बाहर की जगह पर

खुजली कर लेने भर का क्षणिक लेकिन अनुपम

आनंद तो थोड़ा नसीब हो ही जायेगा। 

और कुछ तात्कालिक दुख भी जाने से पहले

बेचैनी भरा इन्तज़ार करवाते हैं

जैसे कि मैं नहीं जानती कि हलक़ में फँसा

मछली का यह काँटा

सूखे चावल के किस निवाले के साथ

अगले मुकाम की ओर रवाना होगा

और उससे भी अधिक जानलेवा संकट यह है कि

पड़ोसी नौटियाल जी जो 'मनचला' उपनाम से कभी

श्रृंगार रस, वीररस और राष्ट्रभक्ति की

छंदबद्ध कविताएँ लिखा करते थे, 

सामने सोफे पर पाल्थी मारे जमे हुए हैं 

और मुझे लगातार बताये चले जा रहे हैं कि

हलक़ में मछली का काँटा अटकने से

कौन-कौन से बड़े-बड़े लोग

अबतक स्वर्ग सिधार चुके हैं। 

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(23 Oct 2023)

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