रसोई में टँगा है शिव-पार्वती की
तस्वीर वाला कैलेण्डर।
दिसम्बर में सामने है सितम्बर का पन्ना।
उसपर अलग-अलग रंगों की
पेंसिलों से अलग - अलग चीज़ों की
याददिहानी के लिए बने हुए
अलग-अलग किस्म के निशान।
किनारों पर कुछ लिखा हुआ अस्पष्ट सा
जैसे कोई कूट-संकेत हो।
तेल और मसाले के धब्बों के बीच।
कोने पर बनी हैं एक पतंग और एक चिड़िया।
शायद बच्चे को चुप कराने या किसी ज़िद से
उसका ध्यान भटकाने के लिए।
तीन महीने पहले इस घर से एक स्त्री
बसी-बसायी गृहस्थी छोड़
रात के अँधेरे में भाग गयी थी
अपने प्रेमी के साथ या शायद अकेले।
उसका कोई सुराग़ नहीं मिला है अबतक।
स्त्रियाँ कई बार कूट भाषा में अपने सपनों को
मंत्र की तरह लिखकर छुपा देती हैं
रसोई घर या गुसलखाने के भीतर कहीं,
या छत पर खुले में पड़े कबाड़ के बीच
और बरसों इन्तज़ार करती हैं।
एक दिन अचानक उनकी अनुपस्थिति लोगों को
आश्चर्यचकित कर देती है।
अस्वाभाविक जीवन में स्वाभाविकता से
अधिक आश्चर्यजनक कुछ नहीं होता।
अपने सपनों के साथ भागी हुई स्त्रियों को
दुनिया भर की जासूसी एजेंसियाँ मिलकर भी
पता नहीं लगा सकतीं।
अगर वे मिलतीं भी हैं
तो कोई और होती हैं।
और नहीं मिलतीं तो भी
कोई और हो चुकी होती हैं।
कई बार तो वे हवा में विलीन हो जाती हैं।
लेकिन अक्सर ऐसा होता है कि
कहीं और बस गयी होती हैं वे
फिर से भाग निकलने के मंसूबे को
दिल में कहीं दबाये हुए।
रहने से अधिक भागते रहने में ही
उन्हें ज़िन्दा होने का अहसास होता है।
*
(10 Oct 2023)

No comments:
Post a Comment