(पूंजीवाद के विडंबनापूर्ण बुनियादी अंतरविरोध और मानवद्रोही चरित्र के बारे में मार्क्स के इस कथन में वैज्ञानिक परिशुद्धता के साथ ही अदभुत विरल काव्यात्मकता देखने को मिलती है । )
"हमारे युग में हर वस्तु अपने गर्भ में अपना विपरीत गुण धारण किए हुए प्रतीत होती है । हम देख रहे हैं कि मानव श्रम को कम करने और उसे फलदायी बनाने की अदभुत शक्ति से सम्पन्न मशीनें लोगों को भूखा मार रही हैं , उन्हे थकाकर चूर कर रही हैं । दौलत के नूतन स्रोतों को किसी अजीब जादू-टोना के जरिये अभाव के स्रोतों में परिणत किया जा रहा है । तकनीक की विजयें चरित्र के पतन से खरीदी जा रही हैं , और लगता है कि जैसे-जैसे मनुष्य प्रकृति को विजित करता जाता है, वैसे-वैसे वह दूसरे लोगों का अथवा अपनी ही नीचता का दास बनता जाता है । विज्ञान का शुद्ध प्रकाश तक अज्ञान की अंधेरी पार्श्वभूमि के अलावा और कहीं आलोकित होने में असमर्थ प्रतीत होता है । हमारे सारे आविष्कारों तथा प्रगति का यही फल निकलता प्रतीत होता है कि भौतिक शक्तियों को बौद्धिक जीवन प्रदान किया जा रहा है तथा मानव जीवन को प्रभावहीन बनाकर भौतिक शक्ति बनाया जा रहा है । एक ओर आधुनिक उद्योग और विज्ञान के बीच, और दूसरी ओर ,आधुनिक कंगाली तथा अधःपतन के बीच का यह बैरभाव, हमारे युग की उत्पादक शक्तियों तथा सामाजिक सम्बन्धों के बीच का यह बैरभाव स्पृश्य, दुर्दमनीय तथा अकाट्य तथ्य है ।"
--- कार्ल मार्क्स ( People's Paper की जयंती पर भाषण )
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