साधो , इसी नैतिकता ने यह सिखाया कि स्त्री डब्बे मे बन्द करने की चीज़ है। हमारा समाज मुरब्बे का बडा शौक़ीन है। वह बगीचे से फल तोड़कर लाता है , उसका मुरब्बा बनाकर रख लेता है और खाता रहता है। अब इस आधुनिक शिक्षा ने सब गड़बड़ कर दिया। स्त्रियांँ मुरब्बे के डब्बे मे रहती नहीं हैं। वे जब बाहर दिख जाती हैं , तब इस देश के पुरुष की आत्मा को बड़ी चोट पहुँचती है। शताब्दियों के उसके करे-धरे पर पानी फिर रहा है। नैतिकता का नाश हो रहा है। संस्कृति का पतन हो रहा है। साधो , उसका कर्तव्य है कि वह इसका विरोध करे। वह विद्रोह में आवाज़ें कसता है , छेड़छाड़ करता है , गाली बकता है। अब बताओ , उसका यह सात्विक पवित्र विद्रोह क्या निन्दा का पात्र है ??
-- हरिशंकर परसाई

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