सलमान का लॉजिक
सलमान की उमर तेरह साल है।
कोरोना की दूसरी लहर के दौरान
फैक्ट्री बंद हो जाने से उसके बाबा घर बैठ गये।
उमर हो जाने के कारण किसी और फैक्ट्री में
नहीं लग सके, हालाँकि अभी
पचास-पचपन के ही पेटे में हैं।
अब दिहाड़ी के लिए लेबर चौक जाते हैं
लेकिन महीने में बीस दिन से ज़्यादा काम नहीं मिल पाता।
वहाँ भी पहले नौजवान मज़दूरों को ही मिलता है काम।
घर में दो छोटी बहनें हैं और अम्मी हैं जो बीमार रहती हैं।
घर की माली हालत बेहद ख़राब है।
सलमान आठवीं में पढ़ता था।
पढ़ाई छूट गयी और अब एक बजाजा की दुकान में
काम करता है।
दस घण्टे काम के चार हज़ार रुपए घर लाता है हर महीने।
कहता है, पढ़ाई नहीं छोड़ूँगा,
तैयारी करके 'ओपन' से हाईस्कूल का इम्तिहान दूँगा सीधे।
सलमान पहले भगतसिंह पुस्तकालय रोज़ाना आता था
और ख़ूब पढ़ता था और ख़ूब बातें करता था।
प्रेमचंद की ढेरों कहानियांँ पढ़ गया है और भगतसिंह के कई लेख भी।
और भी बहुत कुछ।
चेख़व और गोर्की की कहानियांँ भी।
रूसी नामों पर अँटकता है कहानियाँ पढ़ते हुए
तो उन्हें कापी में नोट करते हुए पढ़ता है।
अख़बार पढ़ता है,
देश-दुनिया की ख़बर रखता है,
सीरिया और फिलिस्तीन और उक्रेन की भी बात करता है।
अब वह सिर्फ़ इतवार को ही पुस्तकालय आ पाता है।
पूरे दिन रहता है, पढ़ता है, खेलता है,
पोस्टर भी बनाता है और कोरस में गाता भी है।
और भी दिन दुकान से छूटने के बाद रात को आ जाता है
कभी-कभार एकाध घंटे के लिए।
पिछले इतवार को पुस्तकालय पर आये थे
कुछ नौजवान मज़दूर, दो लड़कियांँ भी थीं।
बातें हो रही थीं मज़दूरों की एकता बनाने,
संगठन बनाने जैसे मुद्दों पर आज के हालात में।
बाज़ू की मेज पर बैठा सलमान खेल रहा था कैरम
नवीन, अलका और सुमेर के साथ,
कि बोला एकाएक हमलोगों की ओर मुड़ कर
कि,"मैं भी कुछ बोलूँ?"
और इजाज़त का इन्तज़ार किये बगैर
कैरम की गोटियों को बोर्ड के बीच में सजाते हुए बोला,
"ये सारी गोट इकट्ठी हैं।
फिर सबसे पहले ये इस्टाइकर
इनको छिटकाकर बिखरेगा
और फिर एक-एक को निशाना लगाकर
गुच्ची में पिलायेगा।
अब देता हूंँ एक दूसरी मिसाल।
पूरे जंगल में हज़ारों पेड़।
फिर ठेकेदार आदमी लेकर आयेगा
और जितने पेड़ काटने होंगे उन्हें एक-एक कर काट देगा।
गोटियाँ अगर बीच में इकट्ठी रहें तो इस्टाइकर
उन्हें गुच्ची में ढकेल नहीं पायेगा
और सारे जंगल को ठेकेदार क्या सरकार भी,
या कोई भी मशीन एक साथ नहीं काट सकती।
लेकिन न तो गोटियों में जान है न पेड़ों में सोचने
और अपनी जगह से हिलने की ताक़त।
इसलिए इस्टाइकर की चोट से गोटियों को
छितराना ही है और गुच्ची में जाना ही है
और पेड़ों को कटना ही है एक एक करके
अगर सरकार का फैसला हो उनको काटने का।
लेकिन आदमी तो आदमी है, कैरम की गोट नहीं।
आदमी तो आदमी है, वह पेड़ थोड़े न है!"
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#कविता_रोशनाबाद
(31 Mar 2023)
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