दया करने का बिजनेस
मज़दूर बस्ती से कुछ दूर यह एक अलग
रोशनाबाद है I
कचहरी में लेबर कोर्ट और एसएसपी ऑफिस के पास
यह थोड़ा अच्छा सा चायख़ाना है I
कचहरी के बाबू, कुछ वक़ील, कचहरी में किसी
काम से आये सफ़ेदपोश लोग ही यहाँ
अधिक उठते-बैठते हैं I
एनजीओ वाले भी जब इधर आते हैं
तो यहीं अड्डा जमाते हैं I
आज सोमवार है, भीड़ थोड़ी ज़्यादा है I
टेबलों पर चाय पहुँचाने और गिलास धोने वाले
तीन बच्चे हैं तेरह-चौदह साल के I
काउंटर पर बैठा मालिक लगातार उनपर
चिल्ला रहा है तेज़ हाथ चलाने के लिए I
एक नेपाली अधेड़ कारीगर लगातार
चाय उबाल रहा है और मैगी और आमलेट बना रहा है I
एक टेबल पर बैठे कुछ नौजवान
चाय के गिलास रख रहे लड़के को रोककर
पूछते हैं उसका नाम, उम्र, काम के घण्टे और पगार
और फिर आँखें फाड़ कहते हैं आपस में,
"यह तो चाइल्ड लेबर है, एकदम इल्लीगल,
और वह भी एकदम लेबर ऑफिस की नाक के नीचे I
हद है, कैलाश सत्यार्थी की संस्था के ध्यान में लाना चाहिए !"
चाय के खाली गिलास जब वह लड़का
रखने जाता है पीछे कोने में नलके के पास
तो गिलास धोता हुआ लड़का
जो ज़्यादा तज़ुर्बेकार लग रहा है, उससे कहता है,
"राजू हाथ चला फुर्ती से, नहीं सेठ बेमतलब
माँ-बहन करेगा,
तू अभी नया है, दो दिन देखेगा
और फिर गाँड़ पर दो लात देकर निकाल देगा I
इन बाबू लोगों को तो दया करने की आदत है!
इनकी सुनोगे तो भूखों मरोगे, कुत्ते की माफिक!
ससुरे बाल मज़दूरी बंद करा देंगे तो
हम तो भूखों मर जायेंगे I
हमारे घर रोटी क्या इनके बाप पहुँचायेंगे भोसड़ी के!
हुँह! जिसको देखो, हमारा ही चूतिया काट रहा है!
दया करने का इनका बिजनेस भी वैसे चोखा है!
हमारी ही बदौलत चलता है!"
**
(26 march 2023)
No comments:
Post a Comment