साहित्य ललित कला है I
साहित्य के लालित्य को बचाओ
उसमें जो कुछ भी अललित है, कुरूप है,
उसे निकाल फेंको I
साहित्य में फ़ासिज़्म और उसके प्रचार तंत्र को
सुन्दर बनाकर पेश करो I
जीवन की कुरूपता को
साहित्य के लोक से बाहर निकालो I
साहित्य को रंगारंग उत्सव बनाओ I
दिल्ली चलो!
देखो, वहाँ मुरारी बापू, कुमार विश्वास,
चेतन भगत, भूपेन्द्र यादव, मनोज तिवारी आदि-आदि के साथ,
बहुतेरे फिल्मी सितारों के साथ,
अरुण कमल, मदन कश्यप, राजेश जोशी, नरेश सक्सेना आदि
प्रगतिशील जनों की
सुन्दर सजीली झाँकियाँ निकल रही हैं I
दर्शन करो और धन्य-धन्य हो जाओ I
रजनीगंधा खाओ!
'साहित्य आजतक' जाओ!
वहाँ न जा सके
तो 'विश्वरंग' में जाओ
फ़ासिस्ट अंधकार के ख़ूनी ऐतिहासिक काल में
साहित्य की उज्ज्वल छटा निहारो!
अपना जीवन तारो !
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(21 Nov 2022)
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