Monday, November 21, 2022

साहित्य ललित कला है I


साहित्य ललित कला है I

साहित्य के लालित्य को बचाओ

उसमें जो कुछ भी अललित है, कुरूप है, 

उसे निकाल फेंको I

साहित्य में फ़ासिज़्म और उसके प्रचार तंत्र को 

सुन्दर बनाकर पेश करो I

जीवन की कुरूपता को

साहित्य के लोक से बाहर निकालो I

साहित्य को रंगारंग उत्सव बनाओ I

दिल्ली चलो! 

देखो, वहाँ मुरारी बापू, कुमार विश्वास,

चेतन भगत, भूपेन्द्र यादव,  मनोज तिवारी आदि-आदि के साथ, 

बहुतेरे फिल्मी सितारों के साथ, 

अरुण कमल, मदन कश्यप, राजेश जोशी, नरेश सक्सेना आदि

प्रगतिशील जनों की

सुन्दर सजीली झाँकियाँ निकल रही हैं I

दर्शन करो और धन्य-धन्य हो जाओ I

रजनीगंधा खाओ! 

'साहित्य आजतक' जाओ! 

वहाँ न जा सके

तो 'विश्वरंग' में जाओ

फ़ासिस्ट अंधकार के ख़ूनी ऐतिहासिक काल में

साहित्य की उज्ज्वल छटा निहारो! 

अपना जीवन तारो ! 

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(21 Nov 2022)

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