चीज़ों को बचाने और बचे रहने के बारे में कुछ सच्ची और अप्रिय बातें
चीज़ें जो भी मनुष्यता के लिए ज़रूरी थीं
इतनी तेज़ी से, लगातार,
नष्ट होती जा रहीं थीं
कि विचारक और कवि
और तमाम संवेदनशील और जागरूक लोग
लगातार उन्हें बचाने की
बातें कर रहे थे I
चारों ओर सिर्फ़ बचाने और बचे रहने की
बातें हो रही थीं I
इस बीच कितनी ही चीज़ें
पुरानी पड़ चुकीं थीं
और अपनी उपयोगिता और प्रासंगिकता
या तो खो चुकीं थीं
या खोती जा रही थीं I
कुछ सज्जन लोग
ईमानदारी भरी चिन्ता के साथ
और कुछ बौद्धिक गण
बौद्धिक चतुराई और कूपमण्डूकता के साथ
लगातार चीज़ों को बचाने की
बातें कर रहे थे
और मुड़-मुड़कर पीछे की ओर
देख रहे थे I
सिर्फ़ थोड़े से, बहुत थोड़े से ही
ऐसे लोग थे
जो यह कहने की कोशिश कर रहे थे कि
सारी चीज़ों को बचाने की कोशिश
बेमतलब होगी,
ज़िन्दगी को एक मुकाम पर
रोके रहने की तरह,
या फिर उसे पीछे लौटा ले जाने की तरह I
अगर आततायी नहीं नष्ट करते
तो भी कुछ चीज़ें नष्ट हो जातीं
वक़्त के साथ
और कुछ को लोग स्वयं नष्ट कर देते
नयी चीज़ों का सृजन करते हुए I
केवल उन चीज़ों को बचाने के बारे में
सोचना ज़रूरी है हर क़ीमत पर
जिन्हें पुनःसंस्कारित करके
आने वाले समय का
नया जीवन सहयोजित कर सकता हो
अपने भीतर I
मनुष्यता का बुनियादी संकट यह नहीं है कि
पूँजी-पिशाचिनी के चाकर
आततायी, गुण्डे और हत्यारे
बहुत सारी चीज़ों को
नष्ट कर रहे हैं I
मूल संकट यह है कि वे
नयी चीज़ों के जन्म की संभावनाओं को
नष्ट कर रहे हैं,
उन्होंने मानवीय सृजन की कार्यशालाओं के
दरवाज़ों पर
भारी ताले लटका दिये हैं
और मुनाफ़े का उत्पादन करने वाले
कारख़ानों की चिमनियाँ लगातार
सिर्फ़ ज़हर उगल रही हैं
और नालों में रक्त बह रहा है
और सड़कों पर मांस के लोथड़े
बिखरे हुए हैं I
ऐसे फ़ासिस्टी अँधेरे में
चिन्ता सिर्फ़ नष्ट हो रही चीज़ों को
बचाने की नहीं
बल्कि नयी चीज़ों को रचने की होनी चाहिए
और रणनीति सिर्फ़ बचने के लिए नहीं,
बल्कि लड़ने और जीतने के लिए
बनायी जानी चाहिए
क्योंकि सिर्फ़ लड़कर ही
बचा जा सकता है I
हत्यारे अगर सौ साल की
योजना बना रहे हैं
तो उनके ख़िलाफ़ सिर्फ़
आज और कल के नज़रिए से सोचने वाला
चाहे मासूम हो या कायर,
या चाहे सिर से पाँव तक
ख़ून और मवाद में लिथड़ी पूँजी के
चमकदार, भव्य लोकतांत्रिक लबादे से
सम्मोहित कोई बौद्धिक अहमक,
कल को वह दिन-दहाड़े
चौराहे पर चाकुओं से गोद दिया जायेगा
रामदास की तरह,
या अपने ही जलते घर में क़ैद
जलकर राख हो जायेगा,
या सड़क पर दौड़ाकर और घेरकर
भेड़िए उसका शिकार कर डालेंगे
या अदालत में क़ानून के हाथों
उसका क़त्ल कर दिया जायेगा I
ऐसा कहने वाले लोगों की आवाज़ें थीं
नक्कारख़ाने में तूती की तरह
लेकिन सभी नक्कारों को
फटकर शान्त पड़ जाना था एक दिन
और तब तूती की आवाज़ ही
घहराती हुई गूँजनी थी दूर-दूर तक
-- इसे वे थोड़े से दूरदर्शी लोग जानते थे!
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(15 सितम्बर 2022)
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