Monday, September 12, 2022

शाम से देर रात तक : कुछ प्रभाव-छवियाँ

 

शाम से देर रात तक : कुछ प्रभाव-छवियाँ
शाम
ओस की तरह गिर रही है 
सड़कों पर, 
घरों की छतों पर I
अँधेरा धीरे-धीरे 
आसमान से उतर रहा है
एकाकी आत्मा पर
उदासी की तरह  I 
सड़क किनारे खड़े
बूढ़े वृक्ष की हरीतिमा
खोती जा रही है
धुँधलके में, 
पराजय स्वीकार कर चुके
व्यक्ति की उम्मीदों की तरह I 
रात को दस बजे
कुत्ते भौंक रहे हैं
और एक यशकामी बूढ़ा कवि
सोचता है कि क्या वह 
काठ हो चुका है कि उसे
सपने नहीं आते! 
एक कुलीन स्त्री चित्रकार
प्रेक्षागृह में
ग्रीक त्रासदी पर आधारित
एक नाटक देखकर
लौटने के बाद
आईने के सामने खड़ी है
निर्वस्त्र
और पूछ रही है 
उत्तर-सत्य के शोधक
अपने दार्शनिक प्रोफेसर पति से कि
चित्रों में आत्मा को
किस रंग के कपड़ों में
दिखाना बेहतर रहेगा! 
खिड़की के रंगीन शीशों पर
रास्ते से चुपचाप गुज़रते 
लोगों की परछाइयाँ 
काँप रही हैं I 
आराघर में
जंगल से लादकर लाई गयी
लकड़ी उतारी जा रही है I
पता नहीं, लकड़हारे
इससमय कहाँ होंगे --
शायद घर पहुँच चुके हों, 
या शायद
शराबखा़ने में बैठे हों! 
गली के मकान के तहख़ाने से
प्रिंटिंग प्रेस के लगातार चलने की
आवाज़ आ रही है I
बच्चों को कल
एकदम सुबह उठना है
लेकिन उनकी आँखों में
अभी भी नींद नहीं है
जबकि पूरा शहर सो चुका है I 
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(12 सितम्बर, 2022)

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