Sunday, September 11, 2022

कठिन सवालों और सपाट बयानों से बनी कविता


कठिन सवालों और सपाट बयानों से बनी कविता

उदासी और आहें क्या

बीत चुके प्यार के दिनों को

वापस ला सकेंगी? 

वसंत और प्यार की

प्रतीक्षा करते हुए

आ चुकी और आने वाली विपत्तियों को

क्या भुलाया जा सकेगा? 

इतनी तकलीफ़ों को, 

लोगों की इतनी तकलीफ़देह ज़िन्दगी को, 

विमर्शों की ओट में

ओझल कैसे किया जा सकेगा? 

जीवन-यथार्थ को 

हवा में ग़ायब कैसे कर देगा

कोई दार्शनिक जादूगर, 

कोई बौद्धिक कापालिक? 

सड़कों पर बरसों-बरस का

सूखा हुआ इतना ख़ून

तमाम नदियों के पानी से भी

क्या धोया जा सकेगा ? 

लोकतंत्र की चादर

कितने शवों को ढँक सकेगी? 

फ़ासिस्टी मंसूबों को उनके

कर्तव्य-पथ पर मार्च करने से

कैसे रोका जा सकेगा

संसदीय विदूषकों के मोर्चे बनाकर? 

विलापों और चीखों को

संसदीय शोर में डुबो पाना

कैसे सम्भव हो सकेगा? 

प्रार्थनाएँ और शान्ति-पाठ

अत्याचारियों को अपनी करनी पर

पुनर्विचार और पश्चाताप के लिए

कैसे प्रेरित कर सकेंगे? 

विजयी होकर भी क्या बर्बर आक्रान्ता

विद्रोही आत्माओं के सपनों

और मंसूबों को गुलाम बना सकते हैं? 

प्रेम और प्रकृति और मनुष्यता के बारे में

जादुई सौन्दर्य से भरी कविताएँ

क्या उस कवि के अपराधों को

छुपा सकती हैं

जो हत्यारों के हाथों पुरस्कृत होकर

अमरत्व के सपने देख रहा है? 

आँधी में जब पेड़ उखड़ रहे हों

और डालियाँ टूट रही हों, 

तब घोंसलों में पक्षी

कबतक सुरक्षित रह सकते हैं? 

लेकिन कोई विनाशकारी वेगवान बवण्डर भी

समूचे जंगल को 

तहस-नहस नहीं कर सकता! 

टूटी हुई डालियों की जगह लेने के लिए

नयी डालियाँ उगने लगती हैं, 

नये पौधे पनपने लगते हैं

और पक्षी फिर से नये बसेरे

बनाने लगते हैं  I

रात की आँधी में ध्वस्त हो चुके

सराय के अहाते में टिके यात्री

आगे के सफ़र पर 

निकल पड़ने के लिए

सूरज निकलते ही

अपना सामान बाँधने लगते हैं I 

**

(11 सितम्बर, 2022)

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