Tuesday, September 06, 2022

गाड़ी रोककर वह फल-सब्ज़ी ख़रीद रहे थेI मुझे देखकर भी अनदेखा कर दियाI दो दिन पहले शाम की बात हैI 

परिचय काफ़ी पुराना थाI हमलोगों के कामों के लिए सहयोग करते थे, पत्र-पत्रिकाएँ भी लेते थेI प्रगतिशील विचारों के नागरिक हैं, एक्ज़ीक्यूटिव इंजीनियर हैं, लेकिन प्रैक्टिकल आदमी हैं, घूस-कमीशन से भी परहेज़ नहीं हैI लेकिन ज़्यादा लालच नहीं करते और कोई जोखिम नहीं लेते! 

तीन महीने पहले ज़बरदस्ती अपने बेटे के जन्मदिन पर अपने घर ले गये I मेरी एक न सुनी I कहने लगे,"मेरा बेटा सोलहवें साल में प्रवेश कर रहा हैI ऐसे मौक़े पर आपको उसे आशीर्वाद तो देना ही होगा! आपलोगों के मुँह में सरस्वती का बास होता है!" बेटा भी ऐसा लायक़ कि मेरे 'ना-ना' करने के बावजूद चरणों में झुक गया!

फिर मैंने उसे हृदय की गहराइयों से आशीर्वाद दिया, "तुम चाहे जितनी भी तकलीफ़ और मुफलिसी की ज़िन्दगी बिताना, लेकिन एक सच्चा, अच्छा इंसान बनना, उसूलपरस्त और इंसाफ़पसंद बने रहना, हार-जीत की चिंता किये बगैर न्याय के लिए संघर्ष करते रहना, भगतसिंह के रास्ते पर चलना... "... आदि-आदि! 

पता नहीं क्यों, दिल की गहराइयों से निकली इन शुभकामनाओं से महफ़िल में सन्नाटा छा गया! उसके बाद चंद औपचारिक संवादों के अतिरिक्त किसीने मुझसे कोई बात नहीं की ! 

वह दिन और आज का दिन! उन शुभचिन्तक इंजीनियर महोदय ने कभी मेरा फ़ोन नहीं उठाया I  और उस शाम सब्ज़ी मार्केट में दीखे तो यूँ मुँह फेर लिया जैसे हमें जानते ही नहीं!

(6 Sept 2022)

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