'जाने' की क्रिया
कहीं से जाना कहीं और आने के लिए होता है I
जिन्हें छोड़ने पड़ते हैं अक्सर ही पुराने ठिकाने
नये ठिकाने खोजते हुए,
जो रोज़ी और ज़िन्दगी और प्यार के लिए
दरबदर होते रहते हैं,
जो निरंतर यात्रारत रहते हैं,
जिन्हें मुश्किल से वीरान सरायों में,
बस अड्डों पर, प्लेटफार्मों और फुटपाथों पर
और भुला दिये गये शहरों में
और शरीफ़ों के बीच बदनाम मानी जाने वाली बस्तियों में
रात भर के लिए
या कभी-कभी चंद दिनों के लिए
ठिकाने नसीब होते हैं
और जो दुनिया के सबसे मामूली लोगों के
घरों और दिलों में
अपने ठिकाने बनाते हैं,
उन्हें 'जाना' हिन्दी की
सबसे ख़ौफ़नाक क्रिया नहीं लगतीI
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(1सितम्बर 2022)
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