Thursday, September 01, 2022


मगरमच्छ, मोर और अशोक स्तंभ के शेर तो पहले ही देश और हिन्दू धर्म की रक्षा हेतु प्राण न्यौछावर करने और वीरतापूर्वक हर उपहास का सामना करने की शपथ ले चुके थे! एक दिन बुलबुल को शाहजी का संदेश मिला, "बहुत प्यार-मुहब्बत के नग़्मे सुनाकर नौजवानों को गुमराह कर चुकी! अब तुम्हें भगवा देशभक्तों के चमत्कारी गाथा-गीत सुनाने होंगेI  बात भेजे में न घुसी हो तो घुसाने के लिए ईडी और सीबीआई वाले तैयार बैठे हैं और फ़रियाद करने पर त्वरित ललित न्याय मिलेगा, लोया हो जायेगा! बोलो, क्या चाहती हो?"

बुलबुल बोली, "हुज़ूर, मुझ नन्हीं सी जान के लिए इतनी तक़लीफ़ क्यों उठाते हो! जो हुक्म करो बजा लाऊँगी! पलक झपकते इतिहास में गोते लगाकर सावरकर को रोज़ाना सेलुलर जेल से उड़ाकर मातृभूमि के दर्शन कराऊँ, आपके साहब को कल्कि अवतार बताकर उनकी सवारी बन जाऊँ, गाँधीनगर से दिल्ली सवारी ढोने लगूँ, आपके दुश्मनों को देश का दुश्मन साबित करने के लिए उनके कम्प्यूटरों में सबूत डाल आऊँ, मंदिरों के बाहर  मांस के टुकड़े फेंक आऊँ, लिंचिंग करने वाले किसी गैंग में शामिल हो जाऊँ -- बस इशारा तो करो माई-बाप! लेकिन मुझपर कोप दृष्टि न डालो! मैं तो हिन्दी के उन वामनामधारी कवियों से भी ज़्यादा दीन हीन हूँ जो वजीफे-ईनाम और ओहदे के लिए आपके दरबार में सज़दा करने लगते हैं! फिर मुझ ग़रीब को ही डराते क्यों हो? डराने की जगह मुझे लालच दो, मैं तुम्हारे हर हुक्म पर नाचूँगी, तुम्हारे मनचाहे गीत सुनाऊँगी और तुम्हारे लिए एक नया इतिहास ही लिख डालूँगी!"

बुलबुल को क्षमादान मिल गया है! अब वह सौंपे गये टास्क निपटा रही है!

(1 Sept 2022)

No comments:

Post a Comment