Thursday, August 25, 2022

ताकि सनद रहे !

ताकि सनद रहे !

अगर मैं कभी 

अपने उसूलों के साथ समझौता करूँ, 

अगर मैं कभी भी ग़लत चीज़ों को 

बर्दाश्त करने लगूँ, 

अगर मैं कभी इंसाफ़ के लिए लड़ने से

मुँह मोड़ लूँ, 

अगर कभी मैं सच कहने से

हिचकिचाते लगूँ

तो मेरे ऊपर ज़माने का

सारा कहर बरपा हो जाये, 

मेरा दिमाग़ सड़ा हुआ 

कद्दू हो जाये, 

या उसमें गोबर भर जाये, 

और मेरी रीढ़ की हड्डी गल जाये, 

मैं पंकज चतुर्वेदी की तरह

किसी दुराचारी सत्ताधर्मी स्वयंभू महाकवि का 

चारण-गान करने लगूँ

और किस्सागोई करने लगूँ, 

या फिर वृंदावन की कुंज-गलिन में

'राधे-राधे' गाते हुए बागड़ की तरह नाचने लगूँ, 

या ख़ून से लथपथ आतंक-रात्रि में

गीत चतुर्वेदी की तरह 

शीरे और लार से चिपचिपी 

प्रेम कविताएँ लिखने लगूँ, 

या जुगाड़ी जी की तरह 

किसी फ़ासिस्ट मुख्यमंत्री को

अपना पिता बना लूँ, 

या इतना अधिक मानवतावादी हो जाऊँ कि

स्त्री को असह्य यंत्रणा देने के बाद

उस पर एक कविता लिखूँ

और फिर किसी फ़ासिस्ट सरकार की

कला-संगीत की अकादमी में

जाकर बैठ जाऊँ,

या जितेन्द्र श्रीवास्तव की तरह 

"काँख-कूँख कविताई" स्कूल का कवि बन जाऊँ, 

या मदन कश्यप की तरह

दरियागंज की गलियों में

कवि की तरह घूमते-घूमते

सहसा  राजनीति शास्त्र का विशेषज्ञ बन जाऊँ, 

या रविभूषण की तरह पदीदऊ के विचारों में

प्रगतिशीलता का संधान कर डालूँ, 

या दिल्ली-भोपाल-लखनऊ-बनारस-रायपुर की

साहित्यिक तीर्थयात्राएँ करने लगूँ, 

या तमाम जीवित और मृत आराध्यों की

चप्पलें, शालें, पानदान, थूकदान आदि चुराकर

अपने लेखन में उनकी नुमाइश लगा दूँ, 

प्रगतिशीलता के कुर्ते के नीचे

अपना जनेऊ छिपा लूँ, 

या मोदी-शाह के फ़ासिज़्म से लड़ने के लिए

नीतीश कुमार, अखिलेश यादव, राहुल गाँधी, 

ममता बनर्जी या केजरीवाल के

शरणागत हो जाऊँ, 

या सीधे विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ही हो जाऊँ, 

या फिर इस तरह पतन के मलकुण्ड में

गिरूँ कि कविताई की कवायद के बाद

कट-पेस्ट करके इतिहास और दर्शन की 

किताबें लिखते और प्रवचन करते

देवरिया का पाँड़े बन जाऊँ! 

कह रही हूँ यह बात

सभी ईमानदार और सच्चे लोगों को

हाज़िर-ओ-नाज़िर मानकर, 

ताकि सनद रहे!

(25 Aug 2022)

No comments:

Post a Comment