Thursday, September 16, 2021


हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है

तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तुगू क्या है

रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल

जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है

चिपक रहा है बदन पर लहू से पैराहन

हमारी जेब को अब हाजत-ए-रफ़ू क्या है

जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगा

कुरेदते हो जो अब राख जुस्तुजू क्या है

रही न ताक़त-ए-गुफ़्तार और अगर हो भी

तो किस उम्मीद पे कहिए कि आरज़ू क्या है

बना है शाह का मुसाहिब फिरे है इतराता

वगर्ना शहर में 'ग़ालिब' की आबरू क्या है

-- मिर्ज़ा ग़ालिब

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