चिंतन-मंथन-रसरंजन को, विद्वज्जन सब महानगर के, संध्या होते घर से निकले, उचित दिशा कर गये गमन !
वहाँ पहुँचकर सबने गाये राग झिंझोटी, राग बिलावल, भीमपलासी और यमन !
नुक्स निकाले, खुड़पेंची की, चुगली और चापलूसी की, किया खूब विषवमन !
रसरंजन जब खूब हुआ तब प्याले लुढ़के, लोग भी लुढ़के, कुण्ठाओं का हुआ शमन !
साहित्य हुआ कृतकृत्य, भला फिर कला का हुआ, संस्कृति का खिल गया चमन !
(17 Aug 2021)
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