Tuesday, August 17, 2021


मातृभूमि की सत्य कल्पित महिमा के गीत सभी जातियों मे गाये जाते है। ध्रुव प्रदेश का निवासी जो दस फिट बर्फ़ खोदकर एक मछली निकालकर खाता है , वह भी गाता है कि धन्य है मेरा देश ! यह पृथ्वी पर स्वर्ग है ! और रेगिस्तान का आदमी , जो ऊँट का पेट चीरकर पानी निकालकर पीता है , वह भी गाता है कि बलिहारी है इस देश की ! जब आदमी ऐसे गीत गाकर मगन हो जाता है तब नेताओं का काम आसान हो जाता है। वे उसे सिखाते हैं -- 'अब कहो कि मैं इस स्वर्गोपम मातृभूमि के लिए शीश कटा दूँगा ।' बस इसके बाद लोग गीत गाते हुए भूखों भी मर लेंगे और युद्ध छेड़ दो तो सिर कटाने भी पहुँच जायेंगे ।

-- हरिशंकर परसाई

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धरती के पास संगीत उनके लिए है जो सुनते हैं।

-- विलियम शेक्सपियर

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