Friday, August 06, 2021

सफ़र के किसी एक पड़ाव पर

सफ़र के किसी एक पड़ाव पर

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नहीं, सामान कोई ज़्यादा नहीं।

बस कुछ ऐसी चीज़ें हैं जिन्हें

याद रखने के लिए हमारे दिमाग़ को

बहुत मशक़्क़त नहीं करनी पड़ती है

जैसे अपनी कोई पुरानी हृदयहीनता, 

धीरे-धीरे छीजते हुए प्रेम को एक झटके से 

अंज़ाम तक पहुँचा देने वाली कोई एक घटना,

हज़ारों बार की विदाइयों में से

कोई एक विदाई, 

तमाम जुदाइयों में से किसी एक जुदाई का 

कोई एक संवाद,

तमाम प्रेमों में से किसी एक 

प्रेम की विकलता, 

कोई एक दिल से की गयी बेवफ़ाई, 

कोई एक चंद दिनों का साथ,

कुछ वाजिब और ज़रूरी दुश्मनियाँ, 

कुछ पुराने मार्च और सितंबर के महीने,

कुछ दस्तकें, कुछ अभियोग-पत्र,

कुछ स्थगित सपने, कुछ पुरसुकून सायबान,

कुछ तसल्लियाँ, कुछ वायदे

और कुछ क़रार!

बस इतने ही सरो-सामान और सफ़र के लिए 

कुछ निहायत ज़रूरी  चीज़ों के साथ

 और एक बेहद थके हुए घोड़े के साथ

 पहुँची हूँ यहाँ!

रात बीतते-बीतते शायद कुछ और भी

बचे-खुचे हमसफ़र आ पहुँचें।

दरअसल आग लगे जंगलों में हमारे बदहवास

घोड़े जिधर राह सूझी उधर ही भाग निकले।

कमरे ख़ाली नहीं आपके पास तो कोई बात नहीं!

कुछ घंटों की बात है,

अस्तबल में ही हाथ-पैर सीधा कर लेंगे!

सूरज उगने से पहले ही निकल लेंगे।

देख लीजिए, अगर कोई गुंजाइश बन सके तो!

(5 अगस्त, 2021)

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 चित्र-परिचय : Frederick McCubbin (1855 - 1917)

Girl with bird at the King Street bakery

(1886)



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