पथ पर चलते रहो निरंतर
पथ पर
चलते रहो निरन्तर
सूनापन हो
या निर्जन हो
पथ पुकारता है
गत-स्वन हो
पथिक,
चरण-ध्वनि से
दो उत्तर
पथ पर
चलते रहो निरन्तर
*
चोट जभी लगती है
तभी हँस देता हूँ
देखने वालों की आँखें
उस हालत में
देखा ही करती हैं
आँसू नहीं लाती हैं
और
जब पीड़ा बढ़ जाती है
बेहिसाब
तब
जाने-अनजाने लोगों में
जाता हूँकी
उनका हो जाता हूँ
हँसता हँसाता हूँ
--- त्रिलोचन
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