Wednesday, August 18, 2021

धार्मिक कट्टरपंथ आम मेहनतकश अवाम का और स्त्रियों का घनघोर शत्रु होता है।


हम साम्राज्यवाद के जितने विरोधी हैं, उतने ही उत्कट विरोधी हर प्रकार के धार्मिक कट्टरपंथ के भी हैं। हर धार्मिक कट्टरपंथ आम मेहनतकश अवाम का और स्त्रियों का घनघोर शत्रु होता है। 

एक सच्चे सेक्युलर के रूप में हम दृढ़ता से मानते हैं कि धर्म निजी विश्वास की चीज़ है और राजनीतिक-सार्वजनिक जीवन में उसकी कोई दख़लंदाज़ी नहीं होनी चाहिए। हम भारत में कथित "हिन्दू राज" का शंख और घंटा-घड़ियाल बजाने वाले बहुसंख्यावादी कट्टरपंथी फ़ासिज़्म के विरोधी हैं, तो 'इस्लामी अमीरात' और शेखों-शाहों-मुल्लों की सभी तरह की धुर-प्रतिक्रियावादी हुकूमतों के भी विरोधी हैं।

जो भारत में संघी फ़ासिस्टों का विरोध करते हैं और अफ़ग़ानिस्तान में तालिबानी 'इस्लामी अमीरात' की स्थापना का स्वागत करते हैं, वे दोमुंँहे लोग हैं। उनसे हमारा कोई साथ मुमकिन नहीं। 

किसी भी धार्मिक कट्टरपंथ का मुकाबला दूसरे धार्मिक कट्टरपंथ से नहीं किया जा सकता। हर धार्मिक कट्टरपंथ दूसरे धार्मिक कट्टरपंथ को मज़बूत बनाने का ही काम करता है। किसी भी देश के उत्पीड़ित धार्मिक अल्पसंख्यक एक सच्ची सेक्युलर लोकसत्ता के लिए लड़कर ही अपनी मुक्ति हासिल कर सकते हैं। धर्म के झंडे तले संगठित होकर वे बहुसंख्यावादी धार्मिक कट्टरपंथी लहर के कहर से मुक्त नहीं होंगे बल्कि उसे और मज़बूत बनायेंगे।

यह धर्मयुद्धों का युग नहीं है। और जो धर्मयुद्धों का युग था, वह भी मध्ययुगीन शासकों की आपसी लड़ाई का ही युग था। दो पाटों के बीच अंततः पिसती आम मेहनतक़श जनता ही थी। 

आज की दुनिया में सभी प्रकार के धार्मिक कट्टरपंथ आम अवाम को मध्ययुगीन प्रतिगामी धार्मिक यूटोपिया में फँसाकर उसे साम्राज्यवाद और पूँजीवाद का चारा बनाते हैं  तथा,  वास्तविक मुक्ति के क्रान्तिकारी संघर्ष से दूर करके उसकी गुलामी की बेड़ियों को मज़बूत बनाने का काम करते हैं।

अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिकी सेना की विदाई के साथ ही, न केवल वहाँ, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया में अंतर-साम्राज्यवादी होड़ (मुख्यतयाअमेरिकी नेतृत्व वाले पश्चिम खेमे और चीन-रूस की उभरती नयी सामराजी धुरी के बीच), तथा, साम्राज्यवादी धड़ों और इस क्षेत्र के सभी छोटे-बड़े देशों के बुर्जुआ शासकों के बीच नये समीकरणों (टकरावों और सहकारों) का नया दौर शुरू होगा। इस क्षेत्र के सभी देशों में व्यवस्था के गहराते संकट के साथ और बुर्जुआ सत्ताओं की बढ़ती निरंकुशता तथा फासिस्ट उभारों के साथ, आंतरिक वर्ग-संघर्ष की स्थितियाँ भी तेज़ी से विकसित होंगी। खाड़ी क्षेत्र और समूचे अरब इलाके के साथ ही अब दक्षिण एशिया और फिर मध्य एशिया में भी अन्तर-साम्राज्यवादी प्रतिस्पर्धा और इस इलाके के देशों के आंतरिक वर्ग-संघर्ष तीखे हो जायेंगे तथा एक-दूसरे से गुँथ-बुन जायेंगे। पूंँजीवादी विश्व के आर्थिक संकट के राजनीतिक संकट में ढलने और तीखे होते बहुस्तरीय टकरावों का एक बड़ा रंगमंच अब पश्चिम एशिया, दक्षिण एशिया और मध्य एशिया के देशों को जोड़ते हुए तैयार हो रहा है।

 ऐसे ही रंगमंच पर, राख से फ़ीनिक्स पक्षी की तरह उठकर क्रान्तिकारी शक्तियाँ भी अपनी प्रभावी भूमिका निभायें, व्यवस्थागत संकट एक क्रान्तिकारी संकट में बदल जाये और फिर कई देशों में क्रान्तिकारी विस्फोट की स्थिति उत्पन्न हो जाये, इस बात की भी प्रचुर संभावना है।

आखिरकार, दुनिया को यहीं रुके तो रहना नहीं है! यह 'इतिहास का अंत' नहीं है, यह तो फ्रांसिस फूकोयामा भी मान चुके हैं। इक्कीसवीं सदी में विकल्पहीनता, प्रतिगामी उभारों और भ्रमोत्पादक तरल परिस्थितियों के इस अँधेरे के उस पार, बहुत मुमकिन है, एशिया का नया जागरण प्रतीक्षा कर रहा हो!

 इतिहास कई बार कुछ दशकों, या शताब्दी तक के समय के लिए, ठहर सा जाता है, थोड़ा पीछे भी लौट जाता है, लेकिन अंततः उसे आगे ही जाना होता है!

18 Aug 2021


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