अहले-बीनिश को है तूफ़ाने-हवादिस मकतब
लतमा-ए मौज कम अज़ सीली-ए उस्ताद नहीं
.(जिसके पास दृष्टि है, उसके लिए आफ़त और बदकिस्मती के तूफ़ान ही पाठशाला होते हैं और लहरों के थपेड़े गालों पर उस्ताद के चांटों की तरह होते हैं !)
--मिर्ज़ा ग़ालिब
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